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मैं उसका अंश हूँ, बस यही पहचान है मेरी...

Saturday, 10 December 2011

उस परिवार के चेहरे पर खुशी नहीं लौटी फिर

हापुड़ के पास ट्रेन में हुई जघन्य वारदात के कारण मुझे भी एक घटना याद आ रही है। घटना लगभग ढाई साल पुरानी है। अचानक दिल्ली जाना था, सो शाम को बरेली पहुंच गया और बरेली से सुबह को जाने वाली इंटर सिटी ट्रेन में बैठ गया। पूरी ट्रेन में अंगुलियों पर गिनने लायक ही लोग थे। मेरे पास एक परिवार बैठा था, जिसमें माता-पिता के अलावा एक-दो साल छोटी-बड़ी दो बहनें थीं, जिनकी आयु क्रमश: सत्तरह-अठारह वर्ष रही होगी। चारों लोग आपस में चुटकुले, कहानी आदि कहते हुए बड़े ही आनंद पूर्वक सफर कर रहे थे। उन चारों की मस्ती देख कर मैं भी मन ही मन प्रसन्न था। पता ही नहीं चला कि समय कब गुजर गया?
अब ट्रेन पूरी तरह भर चुकी थी। हापुड़ में लडक़ों के कई ग्रुप सवार हुए। अधिकांश गु्रप इस परिवार के आसपास ही जमा हो गये। सत्तर-अस्सी लडक़ों की खाने वाली नजरों से दोनों लड़कियां सहम गयीं। छिछोरे लडक़ों की फब्तियों से लड़कियों के साथ माता-पिता भी पूरी तरह असहज थे। कुछ देर पहले अपनी हंसी से सबको आकर्षित करने वाला परिवार नीचे नजरें गड़ाये ऐसे बैठा था, जैसे इन्हें सजा दी जा रही हो। उन छिछोरे लडक़ों की हरकतें देख कर मेरी बाहें फडक़ रही थीं। लगभग ऐसी ही हालत अन्य यात्रियों की भी थी, क्योंकि अधिकांश यात्रियों की आंखें उन लडक़ों को घृणा की दृष्टि से ही देख रही थीं। इधर-उधर देख कर मुझे लगा कि कोई एक व्यक्ति अगर शुरू हो गया, तो बाकी यात्री समर्थन देने को तैयार ही बैठे हैं। ऐसा महसूस होते ही मेरा साहस बढ़ गया, तो मैं उन छिछोरे लडक़ों को घूरने लगा। मेरे देखने से एक-दो लडक़ा नजरें चुराते दिखाई दिया, तो मेरा साहस और बढ़ गया। अब मैं बोल पड़ा कि भैया परिवार के साथ आप कभी यात्रा नहीं करते हो। मेरी किस्मत ही थी कि किसी लडक़े ने पलट कर जवाब नहीं दिया, तो मैंने प्रवचन देना शुरू कर दिया। मेरे प्रवचन पर साथी यात्री दमदार समर्थन कर ही रहे थे, सो एक-एक कर वह छिछोरे लडक़े खिसक लिये, लेकिन उस परिवार की, वो हंसी फिर वापस नहीं आई। उन लडक़ों के आने से पहले वह परिवार अंताक्षरी खेल रहा था और वह लड़कियां करीब पांच-छ: साल के बच्चों जैसी हरकतें कर रही थीं, जिससे सभी को बड़ी प्यारी लग रही थीं। वह घटना मुझे आज तक याद है और कभी भूल भी नहीं पाऊंगा, क्योंकि उस परिवार के चेहरे पर उस समय जो भाव थे, वह शब्दों में बयां नहीं किये जा सकते, लेकिन मेरे ख्यालों में आज भी एक दम ताजा हैं।