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Tuesday 22 November 2011

मायावती की राजनीतिक चाल में कांग्रेस फंसी

राजनीति का पारंगत खिलाड़ी होने के दंभ में चूर कांग्रेसी बसपा सुप्रीमो मायावती की चाल में फंस गये हैं। राजनीतिक लाभ के लिए मुद्दे सभी खोजते हैं। मायावती भी मुद्दा खोज कर राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास कर रही हैं, तो इसमें बुराई क्या है? मुद्दों को खोजना और फिर उसका राजनीतिक लाभ लेने का आज कल वातावरण बन गया है। कांग्रेसी बहुत पहले से ऐसा करते आ रहे हैं, इसलिए कांग्रेसियों को नीति और सिद्धांत की बात करनी ही नहीं चाहिए। कांग्रेस भूल गयी है कि राजनीति में अनीति की शुरुआत उसने ही की थी। उसी राह पर अब और लोग चल रहे हैं, तो कांग्रेसियों को बुरा नहीं लगना चाहिए।
भारत में तमाम छोटे-छोटे राज्यों को बनाने की मांग आजादी के समय से ही चल रही है। कई बार जोरदार आंदोलन भी हुए हैं। खूनी संघर्ष के बाद कई राज्यों को दर्जा देना भी पड़ा। वक्त के साथ तेलंगाना को छोड़ कर बाकी राज्यों को बनाने की मांग दबी हुई थी। ऐसे में कांग्रेस ने राजनीतिक लाभ लेने के इरादे से ही जल्दबाजी में कदम उठाया और सभी राज्यों के आंदोलन को फिर खड़ा होने को हवा दे दी। रात को तेलंगाना बनाने की मांग मानना और सुबह को विरोध में विधायकों व सांसदों के इस्तीफे दिलवाना भी कांग्रेस की सोची-समझी चाल ही थी। आरोप सही भी हो सकता है, क्योंकि कांग्रेस की दोहरी नीति हमेशा से ही रही है। शायद, इस मामले में भी दोहरी नीति अपनायी हो। इससे इंकार नहीं किया जा सकता। कांग्रेस अन्य दलों पर आरोप लगाती रहती है, पर विद्रोह या तोडऩे की राजनीति करने में वह भी कभी पीछे नहीं रहना चाहती और राजनीतिक हित लाभ के लिए कुछ भी करती रहती है। मायावती ने अलग राज्य को लेकर चिटठी लिखी, तो भी कांग्रेसियों ने हंगामा किया, पर कांग्रेस ने उससे पहले ही बुंदेलखंड को पैकेज देकर अलग राज्य को बनाने की मांग की आधारशिला रख दी थी। बुंदेलखंड में भूख व गरीबी का राज है। इस लिए बुंदेलखंड के लोगों को भी खाना मिलना चाहिए, गरीबी से मुक्ति मिलनी चाहिए, रोजगार के अवसर देने चाहिए, पर यह हालात उत्तर प्रदेश के बाकी हिस्सों या अन्य राज्यों में भी हैं। उनके साथ कांग्रेस ने रहम दिली क्यों नहीं बरत रही? राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को आग्रह के तौर पर आदेश दिया और बुंदेलखंड को मोटा पैकेज मंजूर हो गया। पैकेज मंजूर होते ही उत्तर प्रदेश के बाकी हिस्सों के लोगों के मन में अपने प्रति हो रहे दोहरे व्यवहार की बात उठने लगी थी, पर नेतृत्व न होने के कारण आंदोलन का रूप नहीं मिल पा रहा था। ऐसे में प्रदेश की मुखिया मायावती ही अलग राज्य बनाने की पक्षधर हैं, तो यह प्रदेशवासियों के लिए खुशी की ही बात कही जायेगी, क्योंकि अलग राज्य बनाने की कोई और राजनीतिक दल या संगठन अगुवाई करता, तो शायद सत्ताधारी बसपा और मुख्यमंत्री मायावती को भी रास नहीं आता।
तेलंगाना मुददे पर कांग्रेस की सोची-समझी राजनीतिक चाल ने या स्वार्थपूर्ति के लिए की गयी जल्दबाजी ने गोरखालैंड, विदर्भ, कुर्ग, बुंदेलखंड, सौराट्र, पूर्वांचल, मिथिलांचल, रूहेलखंड, हरित प्रदेश, मरू, और बोड़ोला जैसे राज्यों की मांग को भी पहले ही हवा दे दी थी। तेलंगाना को लेकर कांग्रेस हीरो बनना चाहती थी, पर दुर्भाग्य से और दोहरी नीति के चलते या फिर जल्दबाजी के कारण खलनायक बन गयी, जिससे कांग्रेस दूसरों पर खीज उतारती नजर आ रही है। राजनीतिक स्वार्थ को ऊपर रख कर फैसले लेने वाली कांग्रेस उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती से यह आशा क्यों करती है कि वह शांत बैठी रहें। मायावती ने अलग राज्यों का प्रस्ताव पास कर एक तरह से कुशल राजनीतिक होने का परिचय दिया है। बयानबाजी कर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपने पैर पसारने का प्रयास करती, उससे पहले उन्होंने यह सब कर दिया, तो इसमें बुराई क्या है? इस लिए कांग्रेसियों केमुंह से मायावती पर कटाक्ष करना अच्छा नहीं लगता। यह दूसरा विषय है। सच यह है कि जल्दबाजी में कांग्रेस मायावती की चाल में फंस गयी है, क्योंकि कांग्रेसियों ने मायावती की चिटठी पर कहा था कि यह मायावती की राजनीतिक चाल है। इस लिए मायावती को प्रस्ताव लाना चाहिए और पास कराना चाहिए। अब मायावती ने विधान सभा में प्रस्ताव पास करा दिया, तो कांग्रेसी मुंह चिढ़ाते नजर आ रहे हैं। वह अब विरोधियों के बारे में अपशब्द कहने या सीधा वार करने से बचने लगी हैं, क्योंकि मायावती वक्त के साथ राजनीति में परिपक्व हो चुकी हैं, तभी उन्होंने कांग्रेस के घाघ राजनीज्ञों को पूरी तरह फांस लिया है। मायावती चिटठी लिखे बगैर विधान सभा में प्रस्ताव पास करा लेतीं, तो वह खुद फंस सकती थीं। भले ही प्रस्ताव पास होने के बाद कांग्रेस अलग राज्यों को दर्जा दे देती, पर श्रेय कांग्रेस लेने में नहीं चूकती। इस लिए मायावती ने प्रस्ताव पास कराने से पहले केन्द्र को पत्र लिखा। कांग्रेस मायावती के पत्र लिखने को सिर्फ एक चाल समझ रही थी। इसी भूल के कारण कांग्रेस कहने लगी कि मायावती उत्तर प्रदेश के टुकड़े करने की पक्षधर हैं, तो उन्हें प्रस्ताव लाना चाहिए और पास कराना चाहिए। मायावती यही कहलवाना चाहती थीं। वह अब प्रस्ताव लाकर पास भी करा चुकी हैं। मायावती को इस एक चाल से कई फायदे होने जा रहे हैं। सबसे पहला फायदा तो यह कि अलग राज्य बनाने का श्रेय उन्हें ही मिलेगा एवं अलग होते ही बसपा सभी राज्यों में हमेशा के लिए ताकतवर हो जायेगी और सबसे खास बात यह कि धुर-विरोधी समाजवादी पार्टी को प्रदेश बंटने से सबसे बड़ा नुकसान होगा। समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश से अलग हुए किसी राज्य में कभी जमीन तैयार नहीं कर पायेगी।
मायावती को राजनीतिक चाल चलने में कमतर आंकने वाली कांग्रेस पूरी तरह फंस गयी है। अब कांग्र्रेस के पास मायावती की चाल के अनुसार चलने के अलावा और विकल्प नहीं है। उत्तर प्रदेश में पंख फैलाने का सपना देख रही कांग्रेस को मायावती की बिछायी बिसात पर ही चलना पड़ेगा, अन्यथा कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अभी ऐसी स्थिति में नहीं है कि इस आघात को झेल जाये।
खैर, यह बात तो राजनीति की थी। अगर राजनीति से हट कर देखा जाये तो उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड और पश्चिमी या हरित प्रदेश के रूप में कम से कम दो टुकड़े होने ही चाहिए, तभी उत्तर प्रदेश विकास के पथ पर दौड़ पायेगा। विकास के अलावा भी उत्तर प्रदेश की जनता के सामने कई व्यवहारिक संकट हैं। न्याय की बात ही ले लो। रुहेलखंड क्षेत्र के लोगों को न्याय के लिए अगर सुप्रीम कोर्ट का दरबाजा खटखटाना हो, तो एक दिन ही लगता है। सुबह को जाकर दिल्ली में अपील कर या तारीख कर लोग शाम को लौट आते हैं, जबकि हाईकोर्ट में अपील या तारीख करने के लिए तीन से पांच दिन लगते हैं। सामान्य या मध्यम वर्गीय लोगों को हाईकोर्ट में मुकदमा लडऩे के लिए कर्ज लेना पड़ता है और जीवन उसे उतारने में ही गुजर जाता है। तमाम लोग जेलों में इसी लिए बंद हैं कि उनके परिवारों के पास हाईकोर्ट में अपील करने के लिए धन नहीं है। यह तो एक छोटा सा उदाहरण था। इसके अलावा जब छोटे राज्य होते हैं, तो कानून की पकड़ मजबूत होती है। विकास योजनायें और कार्यक्रम आम आदमी तक अच्छी तरह से पहुंचते हैं। सरकार भ्रष्टाचारियों व लापरवाहों पर पैनी नजर रख सकती है। आम जनता को और क्या चाहिए? यही सब खुशहाली की निशानी है। यह सब पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में देखने को भी मिल रहा है। इस लिए नये राज्यों के लिए उत्तराखंड मॉडल भी कहा जा सकता है।