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Monday 12 December 2011

मीडिया व कांग्रेसी राहुल का महिमा मंडन बंद करें

बिहार विधान सभा के आम चुनावों में राहुल गांधी द्वारा जिन क्षेत्रों में चुनावी सभायें संबोधित की गईं, उन अधिकांश विधान सभा क्षेत्रों में एनडीए के ही प्रत्याशी विजयी हुए, लेकिन कांग्रेसी फिर भी राहुल राग अलापना बंद नहीं कर रहे हैं, जबकि चुनाव परिणामों से साफ हो चुका है कि राहुल के नाम की कहीं कोई आंधी नहीं चल रही है। यह बात मीडिया को भी अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए। मीडिया नेहरू-गांधी खानदान का होने के कारण ही राहुल को हाथों-हाथ लेता रहा है और जनता से पहले ही राहुल को भविष्य का प्रधानमंत्री घोषित करता आ रहा है, इसके अलावा राहुल गांधी में कोई और खास गुण है, तो वह अभी तक जनता को दिखाई नहीं दे रहा है।
वर्तमान में देश भर के कांग्रेसी सिर्फ राहुल गांधी के महिमा मंडन में लगे हुये ही दिख रहे हैं। लगता है मानो, कांग्रेसियों के बीच प्रतियोगिता हो रही हो और सभी राहुल गांधी की अच्छाईयों पर निबंध लिख रहे हों। शायद, इसी लिए मीडिया भी राहुल को कुछ अधिक ही भाव देता है। कोई भी न्यूज चैनल खोलो, तो पांच खबरों में से एक महत्वपूर्ण खबर राहुल गांधी की नजर आ ही जाती है और खबर भी यह होती है कि वह कहां हैं, क्यों हैं, क्या कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं या कुछ नहीं कर रहे हैं, तो क्यों नहीं कर रहे हैं। उन्हें कुछ भी जरूर करना चाहिए, क्योंकि वह उन्हें दिखाना चाहते हैं। निरर्थक खबर देख कर दर्शक कई बार ऐसा ही सोचते हैं। इसी तरह किसी भी अखबार या पत्रिका के फं्रट पेज पर भी राहुल गांधी नजर आ ही जाते हैं। उनकी महिमा मंडन को दर्शाती हुई तीन, चार कॉलम की एक खबर ऑल एडीशन के साथ होती है, जबकि मीडिया जगत में काम करने वाले जानते हैं कि राहुल गांधी का भारतीय राजनीति में क्या योगदान है? मुझे जहां तक ध्यान है, वहां तक राहुल गांधी वर्ष 2००5 में खबरों में आना शुरु हुये और वर्ष 2००6 से उन्होंने रोड शो शुरु कर दिये, जो आज तक जारी हैं। इस बीच परंपरागत लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुन गये और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के पद पर आसीन कर दिये गये। इसके अलावा उनका भारतीय राजनीत में कोई और योगदान है, तो वह मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा है।
राहुल गांधी का भारतीय राजनीति में कितना अनुभव है और कितना योगदान है, वह आप सबके सामने है। इस पर चर्चा करने की बजाये कांग्रेसियों के साथ मीडिया उन्हें जबरन प्रधानमंत्री बनाने पर तुला दिख रहा है। देश के तमाम नेताओं की जेड श्रेणी या जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा हटने की खबर आती है, तो पूरे देश के अखबार या चैनल हर्ष सा व्यक्त करते दिखते हैं और सुरक्षा पर हो रहे खर्च का ब्योरा दिखा कर जनता को जागरुक करना चाहते हैं। यह अच्छी बात है, क्योंकि देश का धन ऐसे बर्बाद नहीं होना चाहिए, पर यह बात कोई नहीं कहता कि राहुल गांधी को वीवीआईपी सुरक्षा क्यों दी जा रही है? सोनियां गांधी यूपीए की आज चेयरपर्सन हैं और केबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है, उस लिहाज से केबिनेट मंत्री के स्तर की सुरक्षा देना सही है, पर उन्हें पहले से ही वीवीआईपी सुरक्षा क्यों दी जा रही है? प्रियंका गांधी बढेरा को वीवीआईपी सुरक्षा क्यों दी जाती है? क्या इस लिए कि यह सब पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी, स्वर्गीय इन्दिरा गांधी या स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू के परिजन हैं? अगर हां, तो और भी कई पूर्व प्रधानमंत्री हैं, जिनके परिजनों के पास एक गनर तक नहीं है। राहुल गांधी के परिजन आतंकियों ने मारे, इस लिए भी नहीं कह सकते, क्योंकि इस देश के सबसे प्रतिष्ठित व्यक्ति राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी गोली से ही मारा गया था, पर उनके परिजन वीवीआईपी सुरक्षा में नहीं चल रहे हैं, फिर और क्या कारण हैं? सरकार से यह जवाब मीडिया क्यों नहीं मांगता या इस पहलू को जनता के सामने क्यों नहीं लाता?
यह मुद्दे उठाने की बजाये मीडिया सिर्फ यह दिखा या लिख रहा है कि राहुल गांधी के बिना प्रधानमंत्री बने इस देश का भला नहीं होगा और तर्क भी दे रहे हैं कि उनके कारण कांग्रेस खड़ी हो रही है, जबकि प्रकृति की यह सामान्य प्रक्रिया है कि जो शिखर पर पहुंच जाता है, वह एक दिन नीचे जरूर आता है और जो नीचे के आखिरी बिंदु को छू लेता है, वह एक दिन ऊपर उठना शुरु कर देता है। कांग्रेस भी उस शिखर पर पहुंच कर नीचे गिरी और नीचे का बिंदु छू कर पुन: ऊपर गयी। उस में राहुल गांधी का क्या योगदान है? अगर राहुल गांधी का योगदान होता तो वर्ष 2००5 में उनका जादू क्यों नहीं चला? यह भी प्राकृतिक क्रिया है कि जो जितनी जल्दी ऊपर या नीचे जाता है, वह उतनी ही जल्दी नीचे या ऊपर आता है। कांग्रेस धीरे-धीरे ऊपर गयी, तो धीरे-धीरे गिरी। भाजपा अचानक उठी और अचानक ही गिर गयी। तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाये, तो भाजपा आज भी कांग्रेस से हर मुददे पर बेहतर पार्टी है, पर भाजपा के साथ फिलहाल ऐसा संयोग बन गया है कि उसमें राष्ट्रीय स्तर पर अधिकांश नेता समकक्ष हैं, जो एक-दूसरे का सम्मान नहीं कर रहे हैं। सीनियर लालकृष्ण आडवाणी जिन्ना प्रकरण के बाद से बिल्कुल बेकार हो गये हैं। उन्हें भाजपा के समर्थक या वोटर्स पूरी तरह नकार चुके हैं, पर विकल्प न होने के कारण भाजपा ने उन्हें जल्दबाजी में लोकसभा चुनाव से पूर्व प्रधानमंत्री घोषित कर दिया, जिसका लाभ कांग्रेस को मिला। इसमें राहुल गांधी का क्या योगदान है?
यह बताने की या याद दिलाने की जरुरत नहीं है कि भारत में लोकतांत्रिक प्रणाली है, जहां परंपरागत तरीके से कुछ नहीं किया जा सकता। यहां जो संविधान कहता है, वही सही है, बाकी सब गलत, तो संविधान नहीं कहता कि किसी खानदान में जन्मे लोगों को वीवीआईपी सुरक्षा मुहैया कराई जाये। राहुल गांधी की जान भी, उतनी ही कीमती होनी चाहिए, जितनी आम भारतीय की। राहुल गांधी इस समय सांसद हैं, तो उनकी तुलना अन्य सांसदों से की जानी चाहिए, पर प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के समकक्ष सुरक्षा मुहैया कराने की कौन सी तुक है? यह सवाल मीडिया को प्रमुखता से उठाना चाहिए, अगर यह सब सच नहीं लिख सकते, नहीं दिखा सकते, तो फिर महिमा मंडन करने से भी बचना चाहिए।
राहुल गांधी के जीवन में संघर्ष की तलाश करते हैं, तो संघर्ष उनके आस-पास भी दिखाई नहीं देता। रोटी, दवा, कपड़ा और मकान के लिए जंग करते हुए, बहन के हाथ पीले करने की चिंता लिए देश में सैकड़ों, हजारों नहीं, बल्कि लाखों युवा दिख जायेंगे, पर जिस युवा वर्ग की राजनीति करने की राहुल गांधी बात करते हैं, उसकी तरह एक बार जीवन जी कर देखें। राहुल गांधी की दिनचर्या पर एक नजर डाली जाये तो सुबह तैयार होने से पहले नाश्ता तैयार हो जाता है। कपड़े पहनने से पहले लग्जरी गाड़ी स्टार्ट हो जाती है और शाम तक भ्रमण कर लोगों से दो-चार मीठे बोल, बोल कर शाम को विश्राम स्थल पर लौट आते हैं। खाना खाकर सो जाते हैं और अगले दिन उसी दिनचर्या पर फिर काम शुरु हो जाता है। इस दिनचर्या में कहां है संघर्ष, अगर है तो वह मुझे तो नहीं दिख रहा। इस समय राहुल गांधी जो कर रहे हैं, वह सब जनता की नजर में भी कुछ नहीं है, पर कांग्रेसियों के साथ मीडिया इस कार्य को प्रधानमंत्री बनने जैसा महान कार्य मानता है।
राहुल गांधी को पता है कि वह देश के प्रधानमंत्री बनने के दावेदार हैं। इस लिए हो सकता है कि भारतीय राजनीति में अपना कद बढ़ाने के इरादे से, मसीहा बनने के इरादे से व मीडिया में छाये रहने के इरादे से रोड शो या गरीबों से मिलने जैसे ड्रामा कर रहे हों, यह बात इस लिए पुख्ता हो रही है, क्योंकि राहुल गांधी ने इस से ज्यादा अभी तक और कुछ किया नहीं है। इस बात पर मीडिया चर्चा नहीं करता और जिस गाड़ी में बैठ कर राहुल गांधी क्षेत्र में घूम कर चले जाते हैं, उस गाड़ी का फोटो और उस गाड़ी को चलाने वाले चालक का इंटरव्यू दिखाते/छापते रहते हैं। प्रोफाइल की बात करने वाली मीडिया को यह सब करते समय प्रोफाइल का भी ध्यान नहीं रहता, इस लिए कांग्रेसियों के साथ मीडिया को भी राहुल गांधी का महिमा मंडन करना छोड़ देना चाहिए।