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Tuesday 13 December 2011

भारत निर्माण का नारा सुन कर चौंक जाते हैं लोग

देश का भविष्य आज के बच्चे ही हैं, पर बच्चों की हालत पर गौर किया जाये तो बेहद दु:खद व आश्र्चयचकित कर देने वाले आंकड़े सामने आ रहे हैं। तीन वर्ष तक के बच्चों के विकास की बात करें तो भारत पड़ोसी देश नेपाल व बांग्लादेश से भी पीछे नजर आ रहा है। पिछले दिनों जारी हुई 51 देशों की सूची में भारत 21वें नंबर पर दिखाई दे रहा है, क्योंकि 45 प्रतिशत भारतीय बच्चों का विकास औसत दर्जे का नहीं है, इसी तरह तीन साल से कम उम्र के 4० प्रतिशत बच्चों का वजन औसत से कम है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 49 प्रतिशत कुपोषित बच्चे सिर्फ भारत में हैं। पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में प्रति सेकेंड एक बच्चा कुपोषण का शिकार हो रहा है। 3.5 करोड़ बच्चे बेघर है, जिनमें पैंतीस हजार बच्चों को आश्रय नहीं मिल पा रहा है। मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्ट और दु:ख पहुंचाने वाली है, क्योंकि एक करोड़ बच्चों को योन शोषण व हिंसा का शिकार होना पड़ रहा है। देश की राजधानी दिल्ली की ही बात करें तो दिल्ली से औसतन प्रतिदिन सत्रह बच्चे गायब हो जाते हैं, इसी तरह पूरे देश में हर साल पैंतालीस हजार बच्चे गायब हो जाते हैं, इतना ही नहीं, देश में 1.7 करोड़ से भी अधिक बाल मजदूर है, जिनमें 12 लाख बच्चे खतरनाक उद्योगों में कार्य कर रहे हैं। इसके अलावा दुनिया में सबसे अधिक बाल विवाह भारत में ही हो रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार 2० से 24 साल आयु वर्ग की विवाहित महिलाओं में 44.5 प्रतिशत महिलायें बाल विवाह का शिकार हो चुकी हैं और यही बाल बहुयें एक वर्ष के अंदर मां बन जाती हैं। कुल बच्चों के मुकाबले 73 प्रतिशत बच्चे यही बाल बहुयें ही पैदा कर रही हैं। अज्ञानता के चलते बाल बहुयें जनसंख्या बृद्धि का प्रमुख कारण बनी हुई हैं।
शिक्षा की दृष्टि से देखा जाये तो 4० प्रतिशत बस्तियों में स्कूल नहीं हैं। 6 से 14 साल तक की 5० प्रतिशत लड़कियां स्कूल में दाखिला लेने के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं। पूरी जनसंख्या पर नजर डालें तो भी हालात खराब ही हैं। विश्व के कुल निरक्षरों में 35 प्रतिशत लोग सिर्फ भारत में ही हैं, जिनमें महिला-पुरुष का अंतर और भी चौंकाने वाला है। सरकार इस सबके लिए सैकड़ों कारण गिना सकती है, पर सच यही है कि सरकारें इन मुद्दों को लेकर बिल्कुल भी गंभीर नहीं हैं, क्योंकि अमेरिका, इंग्लैंड और फ्रांस जैसे देश कुल बजट का 6.7 प्रतिशत रुपया शिक्षा व स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं, लेकिन भारत सरकार कुल बजट में 3 प्रतिशत शिक्षा व 1 प्रतिशत हिस्सा स्वास्थ्य पर खर्च करने के लिए रखती है, जो भ्रष्टाचार व लापरवाही के मकडज़ाल में फंसने के कारण जरुरतमंदों तक नहीं पहुंच पाता। सच, सामने है, पर यूपीए सरकार की चेयरपर्सन सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और स्वयं-भू युवराज राहुल गांधी को फिर भी लग रहा है कि भारत निर्माण हो रहा है।
खैर, हकीकत और नारे में अंतर स्पष्ट नजर आ रहा है, जिससे साफ तौर पर कहा जा सकता है कि कांग्रेस का भारत निर्माण का नारा भाजपाईयों के फील गुड की तरह ही है, जिससे नारा सुन कर आज आम आदमी चौंक ही रहा है, इसलिए आने वाले विधान सभा चुनाव के परिणामों को देख कर कांग्रेसी भी चौंक सकते हैं।