उत्तर प्रदेश के समस्त मतदाताओं का दिल जीतने का इरादा किसी के एजेंडे में नजर नहीं आ रहा और न ही किसी के एजेंडे में आम आदमी के दु:ख-दर्द का संपूर्ण निवारण करने की कोई युक्ति दिख रही है, क्योंकि सभी दल सिर्फ सत्ता हथियाने की जंग लड़ रहे हैं। किसी का भी वास्तविक उद्देश्य उत्तर प्रदेश का सर्वांगीण विकास करना होता, तो वह बहुमत का आंकड़ा छूने की बजाये, सभी सीटें जीतने का दावा करता, लेकिन सबके सब किसी भी तरह बहुमत का आंकड़ा पार करना चाहते हैं, ताकि सत्ता पाने के बाद मनमानी कर सकें।
उत्तर प्रदेश के चुनाव में उतरे दलों में से एक भी दल की विचारधारा ऐसी नजर नहीं आ रही है, जो सत्ता के लिए संघर्ष नहीं कर रहा हो। आम आदमी के दु:ख-दर्द के निवारण के लिए या उत्तर प्रदेश के सर्वांगीण विकास के लिए चुनाव में उतरे होते, तो समूचे उत्तर प्रदेश को जीतने की बात कर रहे होते। आश्चर्य की बात तो यह है कि उत्तर प्रदेश के समस्त विधान सभा क्षेत्रों में अधिकांश दलों ने अपने प्रत्याशी ही नहीं उतारे हैं, इसके अलावा ऐसे दलों की संख्या अधिक है, जो चालीस, पचास से लेकर सवा सौ या डेढ़ सौ विधान सभा क्षेत्रों में ही चुनाव लड़ रहे हैं, इससे साफ है कि ऐसे राजनैतिक दलों के सभी प्रत्याशी जीत जायें, वह तो भी सरकार नहीं बना सकते, क्योंकि सरकार बनाने के लिए विधायकों की जितनी संख्या होनी चाहिए, उतने उन्होंने प्रत्याशी भी नहीं उतारे हैं, ऐसी स्थिति में ऐसे दलों के नेता प्रदेश या प्रदेश की जनता के शुभचिंतक कैसे कहे जा सकते हैं?
खैर, छोटे दलों की बात छोडिय़े, सबसे पहले कांग्रेस की बात करते हैं, तो कांगे्रस के शीर्ष नेता मान ही चुके हैं कि उनकी सरकार नहीं बन पायेगी, साथ में यह भी मान रहे हैं कि अन्य किसी दल की भी सरकार नहीं बन पायेगी, इसी तरह भाजपा के शीर्ष नेता भी मानसिक तौर पर बहुमत न मिलने की बात मान ही रहे हैं, फिर भी ढाई सौ सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं। सत्तारुढ़ बसपा की सुप्रीमो मायावती का दावा भी ढाई सौ सीटें जीतें के करीब ही है, वहीं सपा के अखिलेश यादव ढाई सौ से कुछ अधिक सीटें जीतने का दावा करते नजर आ रहे हैं, इन प्रमुख दलों के अलावा चुनाव में उतरे बाकी अधिकांश दलों का उद्देश्य सभी को बहुमत से दूर रखना ही नजर आ रहा है।
सवाल उठता है कि छोटे या बड़े दलों के छोटे अथवा बड़े नेता उत्तर प्रदेश की समस्त सीटें जीतने की बात क्यूं नहीं कर रहे?
बहुमत के लिए लालायित नेताओं से जनता को सवाल करना चाहिए कि उन्हें सिर्फ बहुमत ही क्यूं चाहिए, वह उत्तर प्रदेश की समस्त सीटें क्यूं नहीं जीतना चाहते?
असलियत में छोटे-बड़े सभी दलों के सभी नेताओं को पूरा विश्वास है कि उनके व्यवहार और कार्यप्रणाली से उत्तर प्रदेश की जनता खुश नहीं है और न ही उनके वादों या दावों पर कोई विश्वास करेगा, साथ में नेता यह भी जानते हैं कि जनता के पास उनके अलावा और विकल्प भी नहीं हैं, जिससे उन सबमें से ही किसी न किसी को चुनने की जनता के पास मजबूरी भी है, यही सोच कर मैदान में डटे हैं कि क्या पता?, अवगुणों की सूची में उत्तर प्रदेश की जनता को सबसे कम अवगुण उनमें ही नजर आयें या जाने-अनजाने सत्ता मिल ही जाये, क्योंकि किसी को तो मिलनी ही है। बस, इसी सोच के साथ अधिकांश दल चुनाव में रात-दिन एक करते नजर आ रहे हैं, लेकिन यह बड़े दु:ख की ही बात कही जायेगी कि उत्तर प्रदेश में एक भी राजनेता ऐसा नजर नहीं आ रहा, जो दावा कर सके कि उसे उत्तर प्रदेश की पूरी जनता प्यार करती है। सभी राजनेताओं का कुछ प्रतिशत लोगों को किसी तरह लुभा कर सत्ता हथियाने का ही उद्देश्य नजर आ रहा है, लेकिन कोई दल या नेता ऐसा भी होना चाहिए, जो समूचे उत्तर प्रदेश को जीतने की बात करे और प्रत्येक विधान सभा क्षेत्र की जनता से कहे कि सौ में से सौ वोट नहीं मिले, तो भी मुझे हारने जैसा ही दु:ख होगा। बात आपको कल्पना से भी परे नजर आ रही होगी, पर आवश्यकता ऐसे ही नेता की है, क्योंकि सत्ता हथियाने की सोच रखने वाले नेता या दल सर्वांगीण विकास या सर्व समाज के हित में काम कर ही नहीं सकते।
उत्तर प्रदेश के चुनाव में उतरे दलों में से एक भी दल की विचारधारा ऐसी नजर नहीं आ रही है, जो सत्ता के लिए संघर्ष नहीं कर रहा हो। आम आदमी के दु:ख-दर्द के निवारण के लिए या उत्तर प्रदेश के सर्वांगीण विकास के लिए चुनाव में उतरे होते, तो समूचे उत्तर प्रदेश को जीतने की बात कर रहे होते। आश्चर्य की बात तो यह है कि उत्तर प्रदेश के समस्त विधान सभा क्षेत्रों में अधिकांश दलों ने अपने प्रत्याशी ही नहीं उतारे हैं, इसके अलावा ऐसे दलों की संख्या अधिक है, जो चालीस, पचास से लेकर सवा सौ या डेढ़ सौ विधान सभा क्षेत्रों में ही चुनाव लड़ रहे हैं, इससे साफ है कि ऐसे राजनैतिक दलों के सभी प्रत्याशी जीत जायें, वह तो भी सरकार नहीं बना सकते, क्योंकि सरकार बनाने के लिए विधायकों की जितनी संख्या होनी चाहिए, उतने उन्होंने प्रत्याशी भी नहीं उतारे हैं, ऐसी स्थिति में ऐसे दलों के नेता प्रदेश या प्रदेश की जनता के शुभचिंतक कैसे कहे जा सकते हैं?
खैर, छोटे दलों की बात छोडिय़े, सबसे पहले कांग्रेस की बात करते हैं, तो कांगे्रस के शीर्ष नेता मान ही चुके हैं कि उनकी सरकार नहीं बन पायेगी, साथ में यह भी मान रहे हैं कि अन्य किसी दल की भी सरकार नहीं बन पायेगी, इसी तरह भाजपा के शीर्ष नेता भी मानसिक तौर पर बहुमत न मिलने की बात मान ही रहे हैं, फिर भी ढाई सौ सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं। सत्तारुढ़ बसपा की सुप्रीमो मायावती का दावा भी ढाई सौ सीटें जीतें के करीब ही है, वहीं सपा के अखिलेश यादव ढाई सौ से कुछ अधिक सीटें जीतने का दावा करते नजर आ रहे हैं, इन प्रमुख दलों के अलावा चुनाव में उतरे बाकी अधिकांश दलों का उद्देश्य सभी को बहुमत से दूर रखना ही नजर आ रहा है।
सवाल उठता है कि छोटे या बड़े दलों के छोटे अथवा बड़े नेता उत्तर प्रदेश की समस्त सीटें जीतने की बात क्यूं नहीं कर रहे?
बहुमत के लिए लालायित नेताओं से जनता को सवाल करना चाहिए कि उन्हें सिर्फ बहुमत ही क्यूं चाहिए, वह उत्तर प्रदेश की समस्त सीटें क्यूं नहीं जीतना चाहते?
असलियत में छोटे-बड़े सभी दलों के सभी नेताओं को पूरा विश्वास है कि उनके व्यवहार और कार्यप्रणाली से उत्तर प्रदेश की जनता खुश नहीं है और न ही उनके वादों या दावों पर कोई विश्वास करेगा, साथ में नेता यह भी जानते हैं कि जनता के पास उनके अलावा और विकल्प भी नहीं हैं, जिससे उन सबमें से ही किसी न किसी को चुनने की जनता के पास मजबूरी भी है, यही सोच कर मैदान में डटे हैं कि क्या पता?, अवगुणों की सूची में उत्तर प्रदेश की जनता को सबसे कम अवगुण उनमें ही नजर आयें या जाने-अनजाने सत्ता मिल ही जाये, क्योंकि किसी को तो मिलनी ही है। बस, इसी सोच के साथ अधिकांश दल चुनाव में रात-दिन एक करते नजर आ रहे हैं, लेकिन यह बड़े दु:ख की ही बात कही जायेगी कि उत्तर प्रदेश में एक भी राजनेता ऐसा नजर नहीं आ रहा, जो दावा कर सके कि उसे उत्तर प्रदेश की पूरी जनता प्यार करती है। सभी राजनेताओं का कुछ प्रतिशत लोगों को किसी तरह लुभा कर सत्ता हथियाने का ही उद्देश्य नजर आ रहा है, लेकिन कोई दल या नेता ऐसा भी होना चाहिए, जो समूचे उत्तर प्रदेश को जीतने की बात करे और प्रत्येक विधान सभा क्षेत्र की जनता से कहे कि सौ में से सौ वोट नहीं मिले, तो भी मुझे हारने जैसा ही दु:ख होगा। बात आपको कल्पना से भी परे नजर आ रही होगी, पर आवश्यकता ऐसे ही नेता की है, क्योंकि सत्ता हथियाने की सोच रखने वाले नेता या दल सर्वांगीण विकास या सर्व समाज के हित में काम कर ही नहीं सकते।