त्योहारों के आने की खुशी हर व्यक्ति के अंदर दिखाई देती है। खुशी के चलते मग्न हर व्यक्ति अपने गम भी भूल जाता है, क्योंकि इंसान यह सोच ही नहीं पाता कि निरंतर खुश रहने के लिए सकारात्मक दिशा में कर्म भी करना पड़ता है और कर्म सही दिशा में न होने के कारण अधिकांश लोगों की खुशी त्योहार के साथ ही चली जाती है।
त्योहारों की तरह ही चुनाव मनाने की धारणा बनती जा रही है, क्योंकि त्योहारों की तरह ही चुनाव भी आते हैं और चले जाते हैं, पर गुजरे चुनाव की बात करें, तो उस समय भी हर गरीब को छत देने का वादा किया गया था, हर बाप को बेटी के हाथ पीले करने लायक संपन्न बनाने का वादा किया गया था, हर गरीब को नियमित चूल्हा जलने का आश्वासन दिया गया था, हर बच्चे को स्कूल भेजने की कसम खाई गयी थी, हर महिला को सुहागिन बने रहने की गारंटी दी गयी थी, हर मरीज को उपचार देने का राग अलापा गया था, हर नागरिक को ससम्मान और भयमुक्त वातावरण देने का दावा किया गया था और अब भी वही सब दोहराया जा रहा है, तो सवाल उठता है कि बदला क्या या गुजरे पांच सालों में आम आदमी को मिला क्या?
बटन दबाने से पहले अगर, आपने यह सब सोच लिया, तो निश्चित ही सही व्यक्ति का चुनाव कर पायेंगे, वरना अगले पांच सालों में भी कुछ नहीं बदलेगा और कुछ नहीं मिलेगा। . . . फिर चुनाव आयेंगे और फिर यही सब दोहराया जायेगा, इसलिए अभी आपके पास सोचने के लिए कुछ पल शेष हैं . . . तो अपने लिए न सही, पर अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए सोचिये और उसी की खुशहाली को ध्यान में रख कर आज बटन दबाईये। ध्यान रखिये सही व्यक्ति चुना गया, तो आपकी ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र की जीत होगी, जिसका पूरा श्रेय आपको ही जायेगा।