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Wednesday 7 March 2012

कड़ी चुनौती है अखिलेश यादव के सामने


उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम वास्तव में चौंकाने वाले ही हैं। हालांकि समाजवादी पार्टी को सर्वाधिक सीटें मिलने की संभावनायें प्रथम चरण का मतदान समाप्त होते ही आये रुझानों से जताई जाने लगी थीं, लेकिन प्रचंड बहुमत की उम्मीद स्वयं समाजवादी नेताओं को भी नहीं थी। उत्तर प्रदेश की जनता का आदेश पूर्ण रूप से समाजवादी पार्टी के पक्ष में ही है, जिसकी समीक्षा राजनैतिक विश्लेषक तरह-तरह से कर रहे हैं। कोई सत्ता विरोधी परिणाम बता रहा है, तो कोई कह रहा है कि समाजवादी पार्टी की लहर चल रही थी, जबकि यह परिणाम विश्वास के प्रतीक हैं।
सोचने की महत्वपूर्ण बात यह है कि उत्तर प्रदेश की जनता के लिए समाजवादी पार्टी का शासन नया नहीं है। समाजवादी पार्टी की सरकार प्रदेश में पहले भी रही हैं। समाजवादी पार्टी की नीतियों के साथ कार्यप्रणाली से जनता अच्छी तरह परिचित है, जिसे जनता पिछले चुनाव में नकार चुकी है और इस बीच समाजवादी पार्टी ने ऐसा कुछ किया नहीं है, जिससे उत्तर प्रदेश की जनता की धारणा बदल गयी, पर जनादेश बता रहे हैं कि कुछ बदला अवश्य है, वरना प्रचंड बहुमत तो दूर, समाजवादी पार्टी बहुमत के आसपास भी नहीं पहुंच पाती।
गौर से देखा जाये तो समाजवादी पार्टी में पिछले दिनों में बहुत कुछ बदला है, बदलाव स्पष्ट दिख भी रहा है, पर बदलाव अभी सोच में आया है, जिसका साकार होना बाकी है। बदली हुई सोच प्रदेश अध्यक्ष व युवा सांसद अखिलेश यादव की है, जिस पर विश्वास कर के ही उत्तर प्रदेश की जनता ने समाजवादी पार्टी को प्रचंड बहुमत दिया है, क्योंकि अखिलेश यादव प्रदेश की जनता के सामने सिद्ध भी कर चुके हैं कि वह सिद्धांतों की कीमत पर कुछ भी बर्दास्त नहीं करेंगे। समाजवादी पार्टी को अपरोक्ष रूप से चलाने वाले अमर सिंह को किनारे कर अखिलेश यादव प्रदेश ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार चर्चा में आये थे और प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद वह समाजवादी पार्टी की धुरी बन गये। विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद उन्होंने प्रत्याशियों को बदलने की बजाये, अपनी सोच से अवगत करा दिया और जनता के बीच जाकर रहने की सलाह दे दी, तभी समाजवादी पार्टी से शुरू से जुड़े छोटे-बड़े नेता भी खुश ही दिखाई रहे हैं और एकमत से अखिलेश यादव को नेता मान रहे हैं। उन्होंने समाजवादी पार्टी के पुराने नेता आजम खां को ससम्मान पार्टी में लाने में किसी तरह की झिझक नहीं दिखाई, लेकिन बाहुबली, धनबली व सपा के धुर-विरोधी डीपी यादव को सपा में लेने का वादा करने वाले आजम खां की एक नहीं सुनी। चुनाव की वैतरणी में फंसे होने के बाद भी अखिलेश यादव ने सिद्धांतों के सामने कुछ और सोचा ही नहीं। पार्टी के दूसरे युवा सांसद धर्मेन्द्र यादव की जिद पर अखिलेश यादव ने डीपी को पार्टी में लेने से साफ इंकार कर दिया, जिसे आजम खां का अपरोक्ष रूप से अपमान ही कहा गया, जिससे पार्टी को नुकसान भी हो सकता था, पर उन्होंने कड़ा फैसला लेकर साफ कर दिया कि सिद्धांतों की कीमत पर उन्हें सत्ता भी नहीं चाहिए। इसी मुद्दे पर वरिष्ठ समाजवादी नेता व राष्ट्रीय महासचिव मोहन सिंह ने भी अखिलेश यादव की आलोचना की, तो उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान ही हुआ यह सब, जिस पर जनता की गहरी नजर थी, तभी जनता का विश्वास अखिलेश यादव पर बढ़ता गया। अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के पिछले शासन की भी कमजोरी जान गये हैं, तभी उन्होंने खुल कर कहा कि सपा की सरकार आई, तो सपा के लोगों को भी गुंडागर्दी करने की छूट नहीं दी जायेगी। अखिलेश यादव की कार्यप्रणाली को लगातार देख रही जनता के पास विश्वास करने के अलावा दूसरा विकल्प ही नहीं था।
अब समाजवादी पार्टी के पास प्रचंड बहुमत है, जो प्रदेश की जनता के विश्वास का प्रतीक है और उस विश्वास पर अखिलेश यादव को ही खरा उतरना है, क्योंकि उनके पिता मुलायम सिंह यादव उदार हैं। उदारता के चलते वह अमर सिंह का साथ कभी नहीं छोड़ पाते, वह डीपी यादव को भी पार्टी में ले लेते और पुराने साथी मोहन सिंह को भी पार्टी से नहीं निकाल पाते, इसी तरह समाजवादी पार्टी की स्थापना के समय से ही जुड़े लोग अगर कानून भी तोड़ते हैं, तो वह फिर मौन हो जायेंगे, यह सब जानते हुए ही जनता चाह कर भी उन पर प्रचंड विश्वास कभी नहीं कर पाती, इसलिए विश्वास पर खरा उतरने की चुनौती अखिलेश यादव के ही सामने है, वह जनता के विश्वास पर खरे उतर गये, तो यह भी निश्चित है कि पांच साल नहीं, बल्कि वह पचास साल शासन करेंगे, साथ ही उत्तर प्रदेश की जनता के चेहरे पर खुशी बरकरार रखी, तो यह भी निश्चित है कि उत्तर प्रदेश की जनता उन्हें दिल्ली की गद्दी पर भी बैठा देगी, क्योंकि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही जाता है। खैर, जनता ने उनके वादों पर विश्वास कर लिया है और अब विश्वास पर खरा उतरने की बारी उनकी है।