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Wednesday 7 March 2012

धर्मेन्द्र ने समाप्त किया डीपी का राजनैतिक कैरियर



समाजवादी पार्टी के युवा सांसद धर्मेन्द्र यादव की जिद के चलते सपा के एक दुश्मन का राजनैतिक कैरियर पूरी तरह समाप्त हो गया है। बाहुबली और धनबली के रूप में कुख्यात डीपी यादव को पार्टी में न लेने पर धर्मेन्द्र यादव ही अड़े थे, वरना डीपी यादव कभी दोस्त बन कर, तो कभी दुश्मन बन कर समाजवादी पार्टी का दुरुपयोग हमेशा करते ही रहते, जबकि अब उनका राजनैतिक कैरियर ही समाप्त हो गया है।
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की अंगुली पकड़ कर ही धर्मपाल यादव नाम का व्यक्ति डीपी यादव बना था, लेकिन अति महत्वकांक्षी होने के कारण सपा सुप्रीमो से रिश्ता तोड़ लिया और उनके विरुद्ध ही आग उगलनी शुरू कर दी। सपा सुप्रीमो के विरुद्ध आग उगलने के कारण भाजपा और बसपा डीपी यादव को सहारा देती रही हैं, इसीलिए  डीपी यादव ने राजनैतिक प्रतिद्वंदिता को व्यक्तिगत रंजिश में बदल लिया और वर्ष 1997 में संभल लोकसभा क्षेत्र से सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के विरुद्ध ही ताल ठोंक दी, लेकिन सपा सुप्रीमो के सामने डीपी को जनता ने नकार दिया। इसी तरह वर्ष 2००2 के चुनाव में प्रो. रामगोपाल यादव चुनाव लड़े तो अपना राष्ट्रीय परिवर्तन दल बना कर पुन: उनके सामने चुनौती पेश कर दी, पर जनता ने फिर धूल चटा दी। इन दोनों चुनाव ने राजनैतिक प्रतिद्वंदिता को व्यक्तिगत रंजिश में बदल दिया, क्योंकि मंच से डीपी यादव ने सपा सुप्रीमो और उनके परिवार के अन्य सदस्यों के बारे में कई बार अशोभनीय भाषा का प्रयोग किया, लेकिन सपा सुप्रीमो ने कुछ नहीं कहा। इतना ही नहीं, पिछले लोकसभा चुनाव में बदायूं लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लडऩे आये धर्मेन्द्र यादव के सामने भी बसपा से टिकट लेकर जंग छेड़ दी और धर्मेन्द्र यादव के बारे में तमाम तरह के मनगढं़त दुष्प्रचार किये, जिससे जनता ने डीपी को पसंद नहीं किया और हरा दिया। इसके बाद विधान परिषद के चुनाव आये, तो सपा सुप्रीमो के बेहद खास कहे जाने वाले जिलाध्यक्ष व पूर्व राज्यमंत्री बनवारी सिंह यादव के मुकाबले अपने भतीजे जितेन्द्र यादव को खड़ा कर सत्ता के सहारे उन्हें बुरी तरह हरा दिया। डीपी का सिलसिला अभी भी थमा नहीं, क्योंकि जिला पंचायत चुनाव में साले की पत्नी पूनम यादव को उतार कर सपा सुप्रीमो के दूसरे सबसे खास माने जाने वाले नरेशप्रताप सिंह की पत्नी चेतना सिंह को भी हरा कर पदमुक्त करा दिया।
समय ने करवट ली और विधानसभा चुनाव का समय आ गया। अवसरवादी डीपी यादव को बसपा ने टिकट नहीं दिया, तो डीपी यादव के पास सपा के अलावा और विकल्प ही नहीं बचा, क्योंकि भाजपा डीपी यादव को लेकर पहले ही काफी फजीहत झेल चुकी है और कांग्रेस कुख्यात डीपी को लेकर विवादों में आना कभी पसंद नहीं करेगी, ऐसे में मंच पर सपा के विरुद्ध आग उगलने वाले डीपी यादव आजम खां के माध्यम से सपा में ही जाने की खिडक़ी तलाश कर आये, पर यह खबर धर्मेन्द्र यादव को जैसे ही मिली, वैसे ही वह डीपी को सपा में न लेने पर अड़ गये। लखनऊ में हुई समाजवादी पार्टी की बैठक में धर्मेन्द्र यादव ने साफ कह दिया कि डीपी यादव को सपा में लेने के पक्ष में वह बिल्कुल भी नहीं हैं, उनकी जिद के आगे ही पूरे नेतृत्व को झुकना पड़ा और प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने साफ कर दिया कि वह डीपी को पार्टी में नहीं लेंगे। हालांकि धर्मेन्द्र यादव की जिद के कारण आजम खां नाराज हो गये और बाद में वरिष्ठ समाजवादी व पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव मोहन सिंह को भी पार्टी से निकालना पड़ा, पर अब चुनाव परिणाम खुद बता रहे हैं कि धर्मेन्द्र यादव की जिद व नेतृत्व का निर्णय एक दम सही था, वरना डीपी यादव अब तक सपा की कुंडली में दुश्मन बन कर बैठे थे और पार्टी में लेेने पर दोस्त बन कर बैठे रहते, जिसकी भरपाई किसी न किसी रूप में सपा के आम समर्थकों को ही करनी पड़ती, उस नुकसान से बचाने के कारण ही जनपद बदायूं के मतदाताओं ने धर्मेन्द्र यादव की जिद को सही ठहराते हुए तोहफे में पांच सीटें दी हैं।