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मैं उसका अंश हूँ, बस यही पहचान है मेरी...

Thursday 19 April 2012

निर्मल से लड़ते हुए रामदेव का साथ देते रहिये

स्वामी रामदेव भाग्य के धनी हैं, तभी देश-विदेश में तहलका मचाये हुए हैं। वह अल्प समय में ही अरबों की संस्था खड़ी कर चुके हैं, इस सबके बाद भी वह कुछ मामलों में दुर्भाग्यशाली भी कहे जा सकते हैं। हालांकि वह जनता के कंधों पर बैठ कर और जनता को भ्रम में रख कर देश के आध्यात्मिक नेता के साथ राजनैतिक नेता भी बनना चाहते थे, इसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के चलते वह कांग्रेस के घाघ रणनीतिकारों से कूटनीतिक मात खा गये और उन्हें जनता से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला, क्योंकि जनता परिवर्तन की आशा उनकी तुलना में अन्ना हजारे से अधिक करने लगी, जिससे उनकी साफ छवि वाला ग्राफ नीचे गिरता चला गया। अन्ना हजारे ठीक उसी समय छाये हुए थे, वरना बाबा रामदेव के साथ हुई घटना पर देश में विद्रोह भी हो सकता था, जिससे बाबा रामदेव का विश्वास कम हुआ है, फिर भी वह उस अपमान का कांग्रेस से बदला लेने के लिए छटपटाते नजर आ रहे हैं। उन्होंने आंदोलन की घोषणा करते हुए दिन भी निश्चित कर दिया है, लेकिन यह भी दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि उनके आंदोलन की तैयारियों के समय सोशल नेटवर्क साइट्स पर निर्मल बाबा नाम के धार्मिक ठग के विरुद्ध वातावरण बना हुआ है। टीवी व प्रिंट मीडिया ने भी निर्मल बाबा का सच जनता के सामने रखना शुरू कर दिया है। इस सबका बाबा रामदेव के आंदोलन पर एक तरह से दुष्प्रभाव ही पड़ेगा, क्योंकि धार्मिक ठगों के कुकृत्यों के खुलासों से जनता का धार्मिक क्षेत्र से जुड़े अन्य लोगों से भी विश्वास लगातार उठ रहा है।
आंदोलन और प्रचार-प्रसार के पीछे बाबा रामदेव की महत्वाकांक्षा को दरकिनार कर देखा जाये, तो उनके मुद्दे सही ही नजर आते हैं, क्योंकि भ्रष्टाचार के सवाल पर किसी भी दल के पास सटीक जवाब नहीं हैं, इसीलिए भ्रष्टाचार देश में मुद्दा नहीं बन पा रहा है। भ्रष्टाचार को जो भी व्यक्ति मुद्दा बनाता है, उसे परोक्ष व अपरोक्ष रूप से मिल कर सभी राजनैतिक दलों के नेता किसी न किसी तरह मात दे ही देते हैं। बाबा रामदेव व अन्ना हजारे एंड पार्टी घाघ नेताओं की एकजुटता का ताजा उदाहरण ही है। इन दोनों की जनता जिस तरह दिवानी थी, वह दिवानगी आज दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही। फिलहाल जनता को बाबा रामदेव का खुल कर साथ देने के लिए आगे आना चाहिए, क्योंकि भ्रष्टाचार के विरुद्ध बाबा रामदेव मौन हो गये, तो भविष्य में इन घाघ नेताओं के विरुद्ध कोई और बोलने का साहस तक नहीं जुटा पायेगा। बाबा रामदेव से जिनके वैचारिक मतभेद हैं, वह भी इस आंदोलन में बाबा रामदेव के साथ आयें, क्योंकि एकजुटता से नये रास्ते खुलेंगे। आने वाले समय में बाबा रामदेव की नीतियां भ्रष्टाचारियों के आसपास ही घूमती नजर आयें, तो उनके विरुद्ध भी कोई न कोई बोलने के लिए खड़ा हो जायेगा, लेकिन साहस का ही गला घोंट दिया, तो कई पीढिय़ों तक भ्रष्टाचारी यूं ही पलते-बढ़ते रहेंगे।
निर्मल बाबा जैसे पाखंडियों के विरुद्ध भी आवाज बुलंद रखिये, क्योंकि धर्म से विश्वास उठना भी देश और समाज दोनों के लिए अच्छा नहीं है। विज्ञान किसी धर्म या रिश्ते को मान्यता नहीं देता। वैज्ञानिक सोच का होना आवश्यक है, पर धर्म विहीन वैज्ञानिक रावण बनता है और धार्मिक वैज्ञानिक राम। धर्म मां-बहन और पत्नी के रूप में स्त्री को देवी के स्थान पर बैठाता है, जबकि विज्ञान सिर्फ स्त्री और पुरुष को ही मान्यता देता है। विज्ञान रिश्तों को नकार देता है और रिश्तों को नकारने का मतलब है कि यह समाज रहने लायक नहीं रहेगा। खुद कल्पना कीजिये कि आपके बच्चे बहन को बहन न मानें, तो वह परिवार कैसा होगा? जानवर से भी निकृष्ट दर्जे की सोच हो जायेगी धर्म विहीन इंसान की, इसलिए धर्म के प्रति आस्था और श्रद्धा को बरकरार रखने का दायित्व प्रत्येक बुद्धिजीवी का होना चाहिए और आगे बढ़ कर धर्म की सही जानकारी जनता को देते हुए धार्मिक ठगों की पोल खोलनी चाहिए। जनता को यह समझाना बेहद आवश्यक है कि धर्म अपनी जगह श्रेष्ठ है, सिर्फ ठग ही नीच हैं। खैर, ढोंगियों के कुकृत्यों के चलते फिलहाल जनता धर्म से जुड़े हर व्यक्ति को संदिग्ध नजरों से देखने लगी है। बाबा रामदेव के आंदोलन पर दुष्प्रभाव पडऩा स्वभाविक है, इसलिए बुद्धिजीवी आगे आयें। देश और समाज हित में इस दुष्प्रभाव को भी रोंकें।