My photo
मैं उसका अंश हूँ, बस यही पहचान है मेरी...

Wednesday 2 May 2012

दुनिया के सबसे बड़े घोटाले पर जस्टिस काटजू भी मौन

भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक कार्यालय के नियमानुसार एक आरएनआई नंबर पर एक ही संस्करण निकाला जा सकता है। अखबार स्वामी संस्करणों की संख्या बढ़ायेगा, तो उसे पुन: और प्रत्येक संस्करण के लिए नया आरएनआई नंबर लेना आवश्यक है। एक ही आरएनआई नंबर पर दो तरह के अखबार नियमानुसार नहीं निकाले जा सकते। खबरों को कम-ज्यादा करने के साथ बदला भी नहीं जा सकता, पर अधिकतर बड़े अखबारों के स्वामी नियम का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के बरेली शहर से प्रकाशित अखबारों का उदाहरण देना चाहूंगा। बरेली से प्रकाशित अमर उजाला, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान जैसे बड़े अखबार एक ही आरएनआई नंबर पर एक से अधिक संस्करण निकाल रहे हैं। बरेली शहर संस्करण, बरेली ग्रामीण संस्करण, बदायूं संस्करण, शाहजहांपुर संस्करण व पीलीभीत संस्करण लिख कर एक ही आरएनआई नंबर पर पांच तरह के अखबार निकाल रहे हैं। नियमानुसार यह सभी संस्करण पूरे मंडल में प्रत्येक पाठक को दिये जाने चाहिए, लेकिन बरेली संस्करण, बरेली ग्रामीण वालों को नहीं दिया जाता, इसी तरह जनपद बदायूं वाला संस्करण शाहजहांपुर, पीलीभीत या बरेली के पाठकों को नहीं बांटा जाता, जिससे स्पष्ट होता है कि अखबार स्वामी जानबूझ कर पाठकों के साथ धोखा कर रहे हैं और नियम विरुद्ध समस्त जनपदों से सरकारी विज्ञापन डीएवीपी मानक के अनुरूप ले रहे हैं। प्रसार संख्या में भी गड़बड़ी कर रहे हैं, इस सबके अलावा प्राईवेट विज्ञापन भी एक ही जनपद के संस्करण में प्रकाशित किया जाता है और जनपद के बाहर या पूरे मंडल में अर्थात तथा-कथित संस्करणों में व्यक्तिगत विज्ञापन प्रकाशित करने के कई गुना अधिक दाम वसूले जा रहे हैं, जिसकी जानकारी आरएनआई के रजिस्ट्रार व डीएवीपी के निदेशक को भी है, पर शिकायत के बावजूद कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। मैंने पंजीयक से लिखित शिकायत की, तो उन्होंने लिखित में ही जवाब दिया कि अखबार स्वामी ऐसा नहीं कर सकते, साथ ही सुझाव दिया कि आपके क्षेत्र में ऐसा हो रहा है, तो संबंधित जिलाधिकारी कार्रवाई करने के लिए सक्षम हैं और उनसे ही शिकायत करें, साथ ही सुझाव में कहा कि भारतीय प्रेस परिषद से भी शिकायत कर सकते हैं। आरएनआई के पत्र के साथ मैंने पहले बदायूं के निवर्तमान जिलाधिकारी अमित गुप्ता से शिकायत की, तो उन्होंने भी जवाब दिया कि इस प्रकरण में कार्रवाई करने के लिए आरएनआई के रजिस्ट्रार ही सक्षम हैं। जिलाधिकारी के पत्र के साथ मैंने पुन: आरएनआई के रजिस्ट्रार से शिकायत की, लेकिन उन्होंने फिर भी कुछ नहीं किया, जिससे आरएनआई के रजिस्ट्रार की भूमिका भी संदिग्ध प्रतीत हो रही है, इसी तरह डीएवीपी के निदेशक से शिकायत कर मांग की कि ऐसे सभी अखबारों का विज्ञापन बंद कर दें, पर उन्होंने भी कुछ नहीं किया। आरएनआई व डीएवीपी की संलिप्तता के कारण ही बड़े अखबारों के मालिक अब तक अरबों-खरबों का मतलब, दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला कर चुके हैं, लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि कार्रवाई करना दूर, इस ओर किसी का ध्यान तक नहीं है। अखबार स्वामियों के भ्रष्टाचार में आरएनआई और डीएवीपी खुल कर साथ दे रहे हैं, साथ ही जिलाधिकारियों की हैसियत कार्रवाई करने की नहीं है, इसलिए आश्चर्य नहीं हुआ, पर आश्चर्य के साथ दु:ख इस बात का है कि भारतीय प्रेस परिषद के चर्चित अध्यक्ष जस्टिस काटजू को भी मैंने लिखित में रजिस्टर्ड एवं मेल द्वारा शिकायत प्रेषित की, लेकिन डेढ़ माह बाद भी कार्रवाई करना तो दूर उनका मेरे पास अभी जवाब तक नहीं आया है। बड़े अखबारों के विरुद्ध जस्टिस काटजू के मौन से प्रतीत हो रहा है कि वह भी चर्चा में बने रहने के लिए ही बयानबाजी करते रहते हैं। उनका वास्तविक बदलाव से कोई लेना-देना होता, तो अब तक वह जांच कमेटी गठित कर सभी अखबारों को नोटिस जारी कर चुके होते। खैर, उक्त प्रकरण में मैं न्यायालय जा रहा हूं और तब तक लड़ूंगा, जब तक उक्त सभी को दोषी सिद्ध न करा दूं, पर सवाल यह उठता है कि जब सभी कार्य न्यायालय को ही करने हैं, तो फिर शासन-प्रशासन की आवश्यकता ही क्या है, क्यूं न इस सब को समाप्त कर सब कुछ न्यायालय के ही अधीन कर दिया जाये।