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Monday 14 May 2012

रामदेव का दुश्मन नहीं है देश का मीडिया

रामदेव और उनके फै्रंचाइजी आज कल कांग्रेस से ज्यादा मीडिया से चिढऩे लगे हैं। यह चाहते हैं कि मीडिया कांग्रेस पर एक तरफा हमला कर सत्ता तक पहुंचने का उनका रास्ता आसान करे। मीडिया ऐसा नहीं कर रहा, तभी रामदेव और उनके फैंचाइजी देश भर की मीडिया को कांग्रेस का गुलाम बताने लगे हैं। देश के प्रत्येक मीडिया संस्थान और प्रत्येक पत्रकार को बिका हुआ मान रहे हैं, लेकिन यह सब कहते हुए यह भूल जाते हैं कि रामदेव के कथित योग अर्थात व्यायाम को योग का दर्जा मीडिया ने ही दिलाया है। रामदेव स्वयं भी यह कह चुके हैं कि वह जो भी हैं, मीडिया के कारण ही हैं। कुल मिला कर रामदेव को ब्रांड रामदेव मीडिया ने ही बनाया है, क्योंकि मीडिया में छाने से पहले उन्होंने कोई ऐसा उल्लेखनीय कार्य नहीं किया था, जिससे उन्हें जनता स्वत: ही पलकों पर बैठा लेती। रामदेव आज विशाल साम्राज्य के स्वामी हैं, लेकिन धन स्वामी बनाने के पीछे भी मीडिया का ही योगदान है। मीडिया ने रामदेव को बहुप्रचारित नहीं किया होता, तो ब्रांड बन चुके रामदेव आज भी गुमनामी की ही जिंदगी जी रहे होते, इस सबके बावजूद रामदेव और उनके फैं्रचाइजी आज मीडिया को अपना दुश्मन मान रहे हैं। माना रामदेव आज देश के चर्चित व्यक्तियों में से एक हैं, लेकिन चर्चित होना ही सब कुछ नहीं होता। संगठन के नाम पर उनके हाथ आज भी खाली ही नजर आ रहे हैं। रामदेव के पास संगठन के नाम पर सिर्फ फंै्रचाइजी ही हैं। रामदेव हिंदुत्व की बात करते हैं, तो भाजपाई और संघी उनके साथ खड़े हो जाते हैं। कांग्रेस के विरुद्ध वातावरण तैयार कर रहे हैं, इसलिए गैर कांग्रेसी उनके पीछे खड़े नजर आ रहे हैं। भ्रष्टाचार समाप्त करने की बात करते हैं, इसलिए आम आदमी मानसिक तौर पर उन्हें समर्थन देता नजर आता है। इन मुद्दों को लेकर ही वह आंदोलन का आह्वान करते हैं, तो लोग प्रशंसा करते नजर आते हैं, पर इनमें अधिकांश लोग भाजपा या संघ की विचाराधारा के ही हैं। कुल मिला कर अभी कुछ प्रतिशत लोग उनके साथ या पीछे खड़े दिखाई भी दे रहे हैं, पर रामदेव जिस दिन अपने राजनैतिक दल की घोषणा करेंगे, उस दिन उन्हें सही मायने में आभास होगा कि उनके साथ कितने लोग खड़े हैं? असलियत में उन्हें अभी भ्रम ही है कि देश की जनता ने उन्हें आध्यात्मिक या योग गुरू के साथ राजनेता के रूप में भी स्वीकार कर लिया है। उनका यह भ्रम राजनैतिक दल बनाने के बाद ही टूटेगा, क्योंकि मुद्दों पर साथ दे रहे भाजपा समर्थक उनके राजनैतिक दल के साथ कभी नहीं जायेंगे, इसी तरह राष्ट्रीय स्वयं संघ एक आर्य समाजी का साथ किसी कीमत पर नहीं देगा। खैर, बात फिलहाल रामदेव की विचारधारा की करते हैं। रामदेव को संसद पर टिप्पणी करने की आजादी चाहिए, पर उन पर कोई और टिप्पणी करे या सवाल पूछे, यह उन्हें बिल्कुल भी स्वीकार नहीं है। इसी दोहरी विचारधारा के कारण वह एक आत्मघाती समाज की स्थापना कर रहे हैं, जिससे भविष्य में लोकतंत्र का भारी नुकसान होने की संभावना व्यक्त की जा सकती है। रामदेव ने जिला मुख्यालयों, कस्बों और शहरों में अपने फैं्रचाइजी बना रखे हैं। उनके दवाखाने हजारों लोगों की आमदनी का प्रमुख स्रोत बन गये हैं, यह फैं्रचाइजी रामदेव को आध्यात्मिक गुरू या राजनेता कम, अन्नदाता अधिक मानते हैं, साथ ही रामदेव राजनीति में प्रवेश कर सत्ता पर काबिज हो गये, तो इन्हीं लोगों को सबसे बड़ा लाभ होगा, इसलिए यह लोग रामदेव के हर आदेश को अक्षरश: मानते हैं। अन्नदाता होने के कारण रामदेव के अवगुणों की चर्चा तक नहीं सुनना चाहते। रामदेव के बारे में कोई पत्रकार कुछ लिख देता है, तो फैं्रचाइजी रामदेव की तरफ से सफाई देने की बजाये पत्रकार के साथ सीधे अशोभनीय दुव्र्यवहार करने लगते हैं। संबंधित पत्रकार और संस्थान को कांग्रेस का गुलाम, एजेंट और भी न जाने क्या-क्या कह कर अपमानित करते हैं? फेसबुक की बात करें, तो रामदेव के फैं्रचाइजी ने रामदेव के शासन काल की कल्पना मात्र से लोगों को कंपकपाने पर मजबूर कर दिया है। रामदेव के अधिकांश फैं्रचाइजी ने फेक आइडी से भी फेसबुक पर एकाउंट बना लिये हैं, जिनका दुरुपयोग रामदेव के अवगुणों का खुलासा करने वाले पत्रकारों के विरुद्ध करते हैं। रामदेव के फै्रंचाइजी ने फेसबुक के हालात इतने खराब कर रखे हैं कि पत्रकारों, साहित्यकारों एवं बुद्धिजीवियों ने दहशत के कारण रामदेव से संबंधित किसी भी विषय पर चर्चा तक करनी बंद कर दी है। रामदेव के फैं्रचाइजी के व्यवहार से यह सिद्ध हो गया है कि रामदेव किसी तरह देश की सत्ता पर काबिज हो भी गये, तो यह देश चौबीस घंटे रहने लायक भी नहीं रहेगा। यह कल्पना इसलिए पुख्ता हो रही है कि संसद और सांसदों पर रामदेव स्वयं अशोभनीय व निदंनीय टिप्पणी कर रहे हैं, तो उनके फैं्रचाइजी पत्रकारों के साथ अशोभनीय दुव्र्यवहार करेंगे ही। असलियत में दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई घटना के बाद रामदेव और उनके फैं्रचाइजी कांग्रेस का स्वयं तो कुछ कर नहीं पाये, पर मीडिया से उन्हें यह आशा थी कि घटना के बाद मीडिया को गृह युद्ध जैसे हालात पैदा कर सरकार को गिरा देना चाहिए था। यह सब नहीं हुआ, इसलिए रामदेव और उनके फैं्रचाइजी मीडिया को कांग्रेस से बड़ा दुश्मन मान बैठे हैं। रामदेव और उनके फैं्रचाइजी के क्रियाकलापों से अहसास होता है कि उन्हें मीडिया से यह अपेक्षा थी कि रामदेव, बालकृष्ण और सरकार के बीच हुए लिखित समझौते का जिक्र ही नहीं करता, पर मीडिया ने उनके लिखित पत्र का खुलासा कर दिया, साथ ही लेडीज़ सलवार-कुर्ता पहन कर भागने वाले रामदेव के निर्णय को भी साहसिक कार्य नहीं बताया, इसीलिए उन्हें देश की जनता से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला। रामदेव और उनके फैं्रचाइजी यह भूल रहे हैं कि मीडिया ने उस दिन भी अपने कर्तव्य का पालन किया था, आज भी कर रहा है और देश हित में आगे भी करता रहेगा। उन्हें राजनीति के रामलीला मैदान में जो कूटनीतिक मात मिली, उसका कारण मीडिया नहीं, बल्कि उनकी अपनी स्वार्थी महत्वाकांक्षा थी और उसी प्रचंड स्वार्थी महत्वाकांक्षा पूर्ति की शीघ्रता में उन्होंने अपना नुकसान स्वयं किया। रामदेव देश के बाहर जमा काले धन का एक-एक रुपया देश के अंदर लाने में कामयाब हो जायें, सत्ता पर काबिज होने के बाद भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने का विश्वास भी जनता को दिला दें, फिर भी उस शासन में कोई नहीं रहना चाहेगा, जिसमें अपनी बात कहने तक की आजादी न हो। वह देश की सर्वोच्च संस्था संसद पर अशोभनीय टिप्पणी कर सकते हैं, तो उन्हें खुद पर टिप्पणी करने का भी अधिकार लोगों को देना ही चाहिए, वरना उन्हें सत्ता सौंपने की कल्पना मात्र से आम आदमी कांप ही उठेगा।