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Thursday 21 June 2012

वैभव का प्रतीक बना राष्ट्रपति भवन

भारत में राष्ट्रपति को प्रथम नागरिक का सम्मान प्राप्त है। जाति, धर्म, क्षेत्र, वर्ग, लिंग, रंग और राजनीति से ऊपर उठ कर राष्ट्रपति का विशेष सम्मान किया जाता रहा है। अधिकांश देशवासी इस पद की गरिमा बनाये रखने के ही पक्ष में हैं, लेकिन यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि प्रतिभा पाटिल ने महामहिम वाली गरिमा को किसी न किसी रूप में कम करने का ही काम किया है, इसीलिए अधिकांश लोग उनके कार्यकाल को भूल जाना चाहते हैं। अधिकांश लोगों का यह भी मानना था कि चुनाव बाद जो भी व्यक्ति इस पद पर आसीन होगा, वह महामहिम वाली गरिमा को पुन: स्थापित करने की दिशा में काम करेगा, लेकिन इस बार राष्ट्रपति पद पर भी दलीय अव्यवस्थायें पूरी तरह हावी नजर आ रही हैं। देश की आन-बान और शान का प्रतीक यह विशेष दायित्व शानौ-शौकत का पर्याय बन कर रह गया है। प्रतिभा पाटिल ने विदेश यात्राओं पर जिस तरह रुपया बहाया, वह राष्ट्रपति के आचरण के अनुकूल किसी भी तरह से नहीं कहा जा सकता। जाते-जाते भी उन्होंने बंगले को लेकर काफी फजीहत कराई, जिसे अधिकांश लोग भूलना ही चाहते हैं, पर राष्ट्रपति चुनाव को लेकर जिस तरह की गतिविधियां चारों ओर नजर आ रही हैं, उसे देख कर तो यही प्रतीत हो रहा है कि राष्ट्रपति पद की वह गरिमा शायद, ही लौट कर आ पायेगी, क्योंकि राजनैतिक दृष्टि से प्रणब मुखर्जी का राष्ट्रपति बनना लगभग तय माना जा रहा है। उन पर पहले से ही भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी के खुले आरोप लगते रहे हैं, जिनकी जांच भी अभी तक नहीं हुई है, ऐसे में उन्हें उम्मीदवारी से स्वयं ही हट जाना चाहिए, वरना जांच में निर्दोष सिद्ध न होने तक लोगों की नजर में वह संदिग्ध बने ही रहेंगे और संदिग्ध व्यक्ति राष्ट्रपति भी हो, तो सम्मान कम लोग ही दे पायेंगे। आरोप सिद्ध हो गये, तो भ्रष्ट राष्ट्रपति विश्व में फजीहत का ही कारण बनेगा एवं प्रमाण होने के बावजूद चाह कर भी राष्ट्रपति के विरुद्ध कार्रवाई नहीं हो पायेगी। इसके अलावा वह स्वयं कह चुके हैं कि उन्हें सपने में राष्ट्रपति भवन का गार्डन दिखाई देता है, जबकि सपने में देश और समाज हित में कोई सराहनीय कार्य आना चाहिये था, इससे साफ है कि वह राष्ट्रपति चौथेपन को शान से गुजारने के लिए ही बनना चाहते हैं? सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या वैभवशाली स्थान का नाम ही है राष्ट्रपति भवन? (उक्त लेख गौतम संदेश में प्रकाशित हो चुका है।)