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मैं उसका अंश हूँ, बस यही पहचान है मेरी...

Friday 26 April 2013

जोशीमठ पर है चीन की नज़र


पाकिस्‍तान की औकात हिन्‍दुस्‍तान के सामने मेमने से ज्‍यादा नहीं है, पर हिन्‍दुस्‍तान मेमने जैसे पाकिस्‍तान का कुछ नहीं कर पा रहा है, जबकि वह लगातार कश्‍मीर को अपना हिस्‍सा बताये जा रहा है। पाकिस्‍तान के मन में जब आता है, तब सीमा पर गोलीबारी कर देता है और जब मन में आता है, तब दहशतगर्दों को देश की सीमा पार करा देता है, लेकिन हिन्‍दुस्‍तान कठोरता से विरोध तक दर्ज नहीं करा पाता। यह बात अब हिन्‍दुस्‍तान की नपुंसकता से जोड कर देखी जाने लगी है, तभी चीन भी हिन्‍दुस्‍तान के खिलाफ राजनैतिक व कूटनैतिक चालें चलने लगा है। परोक्ष व अपरोक्ष रूप से लगातार दबाव बनाता जा रहा है, पर हिन्‍दुस्‍तान अपनी कब्‍जाई जमीन की बात करने की बजाये सिर्फ मूकदर्शक की भांति देख रहा है, जबकि चीन की चाल हिन्‍दुस्‍तान की और लगातार बढ़ रही है। चीन की गिद्ध दृष्टि हिन्‍दुस्‍तान की जमीन पर गड़ी हुई है। हालात ऐसे ही रहे, तो अरूणाचल प्रदेश ही नहीं, बल्कि उत्‍तराखंड, कश्‍मीर और उत्‍तर प्रदेश का रूहेलखंड हिस्‍सा भी एक दिन चीन के नक्‍शे में दिखाई देगा। यह आशंका इस लिय प्रबल होती जा रही है कि जब मेमना पाकिस्‍तान हिन्‍दुस्‍तान से हार मानने को तैयार नहीं, तो चीन तो हिन्‍दुस्‍तान के मुकाबले हर क्षेत्र में इक्‍कीस है।
चीन या पाकिस्‍तान की यह तानाशाह वाली नीति है, क्‍योंकि कश्‍मीर के लोग जैसे हिन्‍दुस्‍तान को आम हिन्‍दुस्‍तानियों की तरह प्‍यार करते हैं, वैसे ही अरूणाचल प्रदेश के लोग भी या चीन की सीमा पर बसे तमाम गांवों के लोगों की आत्‍मा हिन्‍दुस्‍तान में ही बसी है। बार्डर के लोग भले ही दहशत में जीवन गुजार रहे हैं, पर प्‍यार हिन्‍दुस्‍तान से ही करते हैं। बात अगर उत्‍तराखंड से शुरू की जाये, तो हमारी सभ्‍यता, संकृति और पुरातन पहचान कराने वाला विश्‍व प्रसिद्ध तीर्थ बद्रीनाथ धाम चीन के बार्डर से मात्र चालीस किमी दूर है। बद्रीनाथ धाम से करीब दो किमी आगे माना गांव है। चीन की सेनाओं का भय यहां के लोगों को भी सताता रहता है, फिर भी वह कभी चीन के कब्‍जे में जाने को तैयार नहीं है। यह उनकी आत्‍मा की आवाज है, पर जो लोग वहां नहीं गये हैं, वह इस बात पर अविश्‍वास भी जता सकते हैं, ऐसे लोगों के लिए उदाहरण के तौर पर बताना चाहूंगा कि माना गांव के ऊपर गीता को लिखने वाले महामुनि वेद व्‍यास की कुटिया के पास एक चाय की दुकान है, जिसका नाम है हिन्‍दुस्‍तान की आखिरी चाय की दुकान। चाय की दुकान का नाम दुकान मालिक की मानसिकता अथवा देशभक्ति दर्शाने को काफी है।
हिन्‍दुस्‍तान की मानसिकता हमेशा बसुधैव कुटुंबकम की रही है। हिन्‍दुस्‍तानी मानव की तो बात ही छोड़िए, जीव-जंतु और प्रकृति तक से मानव जैसा ही प्रेम करते हैं, पर विदेशी हमेशा से ही प्रेम की जगह शक्ति की भाषा पसंद करते हैं, इसीलिए हिन्‍दुस्‍तान की उदारता को नपुंसकता समझ बैठते हैं। अब समय बदल गया है, इसलिए प्रेम या उदारता से काम नहीं चलेगा। हर हिन्‍दुस्‍तानी चाहता है कि पाकिस्‍तान या चीन से एक बार फैसला हो ही जाना चाहिए। तूफान या युद्ध के दुष्‍परिणाम बाद में दिखाई देते हैं। बार्डर के लोग युद्ध की त्रासदी झेल रहे हैं। आजादी के बाद हिन्‍दुस्‍तान के पास संसाधनों की कमी थी, तब चीन ने 1962 में युद्ध थोप दिया और जमीन कब्‍जा कर सीज फायर घोषित कर दिया। यह युद्ध यहां के लोगों के लिए बेरोजगार कर गया, क्योंकि उससे पहले यहां के लोग आपस में जरूरी चीजों का आदान-प्रदान करते थे। चीजों का इसलिए कि चीन की मुद्रा हिन्‍दुस्‍तान में और हिन्‍दुस्‍तान की मुद्रा चीन में चलाने में मशक्‍कत करनी पड़ती, इसलिए लोग ऊन के बदले दाल, दाल के बदले ऊन, चावल के बदले दाल या और भी जरूरी चीजों को आपस में बदल कर अपने देश के लोगों के बीच बेचते थे। बार्डर के किनारे बसे लोगों का यही मुख्‍य कार्य था, पर युद्ध के बाद से स्थितियां पूरी तरह बदल गयीं। अब इधर से उधर या उधर से इधर हवा भी एक-दूसरे देश की सेनाओं की मर्जी के बगैर नहीं आती। इसके बाद भी लोग चाहते हैं कि हर रोज भय के साये में जीने से अच्‍छा है कि एक बार में ही फैसला हो जाये।
बार्डर पर बसे हिन्‍दुस्‍तानी गांवों की तो बात ही छोड़िए, उस पार तिब्‍बत है। तिब्‍बत भले ही चीन के कब्‍जे में है, पर तिब्‍बती अपने को चीनी कहलाने में गाली समझते हैं और तिब्‍बती कहलवाने में गर्व महसूस करते हैं। पूरे बार्डर पर चीन ने आवागमन व्‍यवस्‍था बेहद अच्‍छी कर ली है। युद्ध के बाद ही चीन ने अक्षयचिन से आगे तक सड़क बना ली है। चीन का कब्‍जा वास्‍तव में माना से तीस किमी दूर तक है, पर उसके नक्‍शे में बद्रीनाथ ही नहीं, जोशीमठ भी दर्शाया जा रहा है। चीन का नक्‍शा बताता है कि वह जोशीमठ में उसकी बार्डर चौकी है, जिसका मतलब है कि वह जोशीमठ तक अपनी सीमा बनाने के लिए लालायित हैं। चीन पाकिस्‍तान की तरह जल्दबाजी नहीं करता। वह दूरगामी योजना बना कर पूरी तैयारी के साथ अटैक करता है। चीन जानता है कि स्थितियां अब 1962 जैसी नहीं हैं, इसीलिए उसने पहले बार्डर पर बड़े पैमाने पर काम कराया। पहले उसकी तिब्‍बत पर नजर थी, तो उसने तिब्‍बत तक मार्ग का निर्माण कराया। तिब्‍बत पर कब्जा करने के बाद चीन ने इस सड़क को अक्षयचिन से जोड़ दिया और 1962 में युद्ध के दौरान हिन्‍दुस्‍तान का काफी क्षेत्रफल कब्‍जा लिया। यह सड़क फिलहाल लद्दाख से आगे तक निकल चुकी है, जो युद्ध के दौरान चीन के लिए बेहद फायदेमंद साबित होगी, इसी तरह लद्दाख से चीन ने माना बार्डर तक भी सड़क का निर्माण कर लिया है। यह सड़क पुनः अक्षयचिन पहुंचा देती है। चीन की आवागमन व्‍यवस्‍था लोहित, डीबंग, अपर सियांग, अपन सूबांसिरी और तावांग तक अच्‍छी भली है। चीन ने यह सब एक दिन में नहीं कर लिया। यह उसकी युद्ध की तैयारी है। खुफिया एजेंसियों की बात ही छोड़िए, यह सब हिन्‍दुस्‍तानी सेना की जानकारी में ही हो रहा था, पर सवाल उठता है कि हिन्‍दुस्‍तान ने अपने संसाधन जुटाने के लिए चीन की ही तरह अपनी सीमा के गांवों को हेडक्‍वार्टर क्यूँ नहीं बनाया? चीन की ही तरह हिन्‍दुस्‍तानी सीमा में अच्‍छी सड़कें क्यूँ नहीं डलवायी गयीं। हालांकि हिन्‍दुस्‍तान की यातायात व्‍यवस्‍था भी दुरूस्‍त है, पर चीन के मुकाबले कुछ नहीं है। चीन ने जब सब कुछ नया किया, तब हिन्‍दुस्‍तान को भी अपनी यातायात व्‍ववस्‍था और दुरूस्‍त करनी चाहिए थी। सीमा पर चीन ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली है, इसीलिए वह ऊल-जलूल हरकतें कर हिन्‍दुस्‍तान को लड़ने को उकसा रहा है। जंग का फैसला जंग के बाद ही होता है, इसलिए यह तो नहीं कहा जा सकता कि कौन जीतेगा, पर हर हिन्‍दुस्‍तानी चाहता है कि अपनी जमीन वापस कर ली जाये। हिन्‍दुस्‍तानियों की यह इच्‍छा पूरी होगी, सरकार की इच्‍छा शक्ति को देख कर तो नहीं लगता।
चीन की युद्ध की पूरी तैयारी है, इसीलिए वह भारत के अभिन्‍न अंग अरूणाचल प्रदेश को अपना हिस्‍सा बताते हुऐ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यात्रा तक पर आपत्ति जता चुका है। फिर वही सवाल उठता है कि जवाब में हिन्‍दुस्‍तान अपनी कब्‍जाई जमीन या सभ्‍यता, संस्‍कृति से मेल खाने वाले तिब्‍बत को अपना हिस्‍सा क्यूँ नहीं बता रहा? यही नरमी पाकिस्‍तान का हौसला बढाती रही हे और अब चीन सीधा गिरेबान पकडने को तैयार है, पर हिन्‍दुस्‍तान कुछ नहीं कर पा रहा। चीन का दुस्‍साहस ही है कि उसके सैनिक भारतीय सीमा में आकर नारे लिख गये। नेपाल के शाही परिवार से हिन्‍दुस्‍तान की नजदीकियां विश्‍व जानता है। हिन्‍दुस्‍तान ने नेपाल के शाही परिवार की जैसी नजदीकियां थीं, वैसी ही मदद भी की होती, तो आज नेपाल में यह हालात नहीं होते, जबकि हिन्‍दुस्‍तान अच्‍छी तरह जानता था कि जब माओवादी सत्ता में आयेंगे, तो वह चीन या पाकिस्‍तान की अंगुलियों पर ही नाचेंगे। नेपाल के मामले में हिन्‍दुस्‍तान की स्थिति स्‍पष्‍ट न होने के ही दुष्‍परिणाम हैं कि आज वहां हिन्‍दुस्‍तान विरोधी हावी हैं और चीन की रेल लाइन को काठमांडू तक लाने को तैयार हैं। हजारों नहीं, बल्कि लाखों नेपालियों का चूल्‍हा हिन्‍दुस्‍तान की कृपा से जलता है, पर हिन्‍दुस्‍तान ने विपरीत हालात होने के बाद भी नेपालियों के आने पर कोई रोक नहीं लगायी है, जिससे हिन्‍दुस्‍तानी मुद्रा लगातार नेपाल में जा रही है। पिछले दिनों सनसनीखेज खुलासा हो चुका है कि नेपाल के शाही परिवार का पुत्र पारस नकली नोटों का सौदागर है, जो हिन्‍दुस्‍तान के बाजार में नकली मुद्रा भेज रहा है, पर हिन्‍दुस्‍तान की सरकार उचित प्रतिक्रिया तक व्यक्त नहीं कर सकी। हिन्‍दुस्‍तान की जड़ों में पाकिस्‍तान पहले से ही तेजाब डाल रहा है, ऐसे में नेपाल भी खुलकर कुछ करे, उससे पहले हिन्‍दुस्‍तानी सीमाओं को दुरुस्त करना होगा। नेपाल आने-जाने के लिए एक ऐसी सरल प्रक्रिया शुरू करनी होगी, जो आने-जाने वालों का हिसाब रख सके, क्‍योंकि नेपाली सीमा का दुरुपयोग अब चीन और पाकिस्‍तान भी कर सकते हैं या कर रहे हैं। अंत में कहना चाहूंगा कि हिन्‍दुस्‍तान ने अग्नि-5 का परीक्ष कर एक तरह से चीन को माकूल जवाब ही दिया है, पर यह कम है। चीन को अभी सिर्फ बेचैनी ही हुई है। हिन्‍दुस्‍तान को कुछ ऐसा करना होगा, जिसमें चीन की नींद उड जाये और आगे से हिन्‍दुस्‍तानी सीमा में घुसने का या कुछ भी हरकत करने का दुस्‍साहस न करे। अरूणाचल प्रदेश को या हिन्‍दुस्‍तान के किसी भी हिस्‍से को अपना अंग बताने से पहले हजार बार सोचे। अग्नि-5 को अरूणचल प्रदेश, कश्‍मीर और उत्तराखंड में ही तैनात करना होगा, ताकि चीन के साथ पाकिस्‍तान की रूह हमेशा कांपती रहे।