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Friday 18 November 2011

संस्कृति व स्वास्थ्य को खाये जा रही है जादुई गोली

आवश्यकता आविष्कारों की जननी है। इस लिए आविष्कार मानव के जीवन को और बेहतर बनाने के लिए किये जाते रहे हैं और किये जाते रहेंगे, पर आविष्कारों के बाद जब वस्तु का दुरुपयोग होने लगता है, तब ऐसा लगता है कि यह आविष्कार हुआ ही न होता, तो अच्छा होता। ऐसे तमाम आविष्कार हुए हैं, जिनका आतंकी, अपराधी या निजी स्वार्थ के लिए लोग दुरुपयोग कर रहे हैं। ऐसा ही एक आविष्कार इमरजेंसी कान्ट्रासेप्टिव पिल का जादुई गोली के रूप में चिकित्सा जगत में हुआ है, जो आज सभ्यता, संस्कृति को ही खाये जा रही है। इस गोली को बनाने वाली कंपनियों ने व्यापक स्तर पर ऐसा प्रचार कराया है कि नाबालिग लड़कियां भी अब सेक्स सम्बंध बनाने में बिल्कुल नहीं हिचक रही हैं, क्योंकि अब छोटे-छोटे बच्चों को भी पता है कि सेक्स सम्बंध बनाने के बहत्तर घंटों के अंदर अगर इस गोली को खा लिया जाये तो गर्भ नहीं ठहर सकता।
इमरजेंसी कान्ट्रासेप्टिव पिल मतलब आपातकालीन गर्भनिरोधक गोली का आविष्कार होना अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, हालांकि पहले भी माला डी नाम की गर्भनिरोधक गोली मौजूद थी, पर इस गोली को लगातार खाना पड़ता था। इस लिए इस गोली का प्रयोग सिर्फ विवाहित महिलायें कर सकती थीं। रोज खाने की बाध्यता होने के कारण विवाहित महिलायें भी माला डी का सेवन करना भूल जाती थीं और न चाहते हुए भी गर्भवती हो जाया करती थीं। गर्भधारण से बचाने के लिए निरोध भी एक उपयुक्त साधन बन कर उभरा। इसका भी व्यापक तौर पर प्रचार-प्रसार हुआ, पर यह दोनों साधन लोकप्रिय तो हो गये, लेकिन जनप्रिय नहीं हो पाये या यूं कहें कि इन दोनों साधनों का प्रयोग पढ़े-लिखे विवाहित दंपति ही कर पाते हैं। कई बार पढ़े-लिखे भी चूक जाते हैं, तब गर्भपात के रूप में एक ही कठिन रास्ता बचता है। सरकार ने कानून बना दिया कि गर्भपात करना व कराना अपराध है, तो गर्भवती महिलाओं को परेशानी होने लगी, क्योंकि समाज में एक ऐसा वर्ग है, जो बच्चे तो चाहता है, पर अभी नहीं। वर्ष-दो वर्ष टालने के लिए ऐसे साधनों का प्रयोग किया जाता है। हालांकि कॉपर टी भी एक उपयुक्त साधन है, पर इसको अधिकांश महिलायें लगवानें से कतराती हैं। यह वर्ग नसबंदी नहीं करा सकता, क्योंकि एक-दो वर्ष बाद सभी को बच्चे चाहिए। ऐसी स्थिति में आपातकालीन गर्भनिरोधक गोली का आविष्कार वाकई वरदान बन कर सामने आया। इस गोली की सबसे बड़ी खासियत यह है कि सेक्स सम्बंध बनाने के बाद गर्भ से बचने के लिए बहत्तर घंटों का पूरा समय है। गोली खरीदने और खाने में भी कोई झंझट नहीं है। इस गुण के कारण यह जादुई गोली देखते ही देखते देश की चर्चित गोली बन गई। टीवी के हर चैनल पर, हर अखबार व पत्रिका में इस गोली का विज्ञापन दिख जाता है। गोली बनाने वाली कपनियों के धूआंधार प्रचार के कारण ही गोली का दुरुपयोग होने लगा है, क्योंकि अविवाहित लड़कियां अब तक सेक्स सम्बंध बनाने के नाम पर इस लिए ही डरती थीं कि कहीं गर्भ न ठहर जाये, पर कपनियों के धूआंधार प्रचार ने बालिग की तो बात ही छोडिय़े नाबालिग लड़कियों के मन से गर्भ ठहरने का डर निकाल दिया है। टीन एज लड़कियों के पर्स में यह गोली च्वइंगम की तरह रहने लगी है। मेट्रो शहरों ही नहीं, बल्कि छोटे-छोटे कस्बों के दवा विक्रेता भी मानते हैं कि इस गोली को खरीदने के लिए विवाहित महिला व पुरुषों की तुलना में टीन एज लड़कियां व लडक़े अधिक आते हैं। इस गोली के दुरुपयोग होने के कारण ही गोली बनाने बाली कंपनियों का डेढ़ सौ करोड़ से भी अधिक टर्न ओवर हो गया है। इस लिए इस गोली के बेचने व खरीदने को लेकर नियम बनाना ही पड़ेगा, अन्यथा अभी शुरुआत है, जिससे स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा है, लेकिन कुछ समय बाद इस गोली के दुष्परिणाम भी सामने आने लगेंगे।
जादुई गोली की ख्याति के कारण ही प्रतिबंध लगाने को लेकर केंद्र सरकार भी पीछे हट गयी। प्रतिबंध लगना भी नहीं चाहिए, पर सरकार को कोई ऐसा नियम बनाना ही पड़ेगा, जिससे इस गर्भनिरोधक गोली का दुरुपयोग रोका जा सके। अहतियात के तौर पर इस गोली के विज्ञापन पर तत्काल रोक लगा देनी चाहिए, क्योंकि विज्ञापन के कारण ही टीन एजर्स के मन से शारीरिक सम्बंध बनाने को लेकर भय पूरी तरह निकल चुका है। पाश्चात्य सभ्यता के हावी होने व फिल्मों के चलते शर्म तो पहले ही निकल चुकी है। गोली के प्रचार के दुष्परिणाम ही हैं कि कक्षा आठ व नौ में पढऩे बाले बच्चे भी शारीरिक सम्बंध बनाने में नहीं हिचक रहे हैं। इस लिए यह गोली टॉफी की तरह बिक रही है। यह सब रोकने के लिए सरकार को सबसे पहले गोली खरीदने की उम्र निर्धारित करनी चाहिए एवं टीन एजर्स को यह गोली बेचने पर अपराध माना जाना चाहिये। यह गोली अगर डाक्टर के पर्चे पर ही दी जाये, तो भी दुरुपयोग होने की संभावना कम हो जायेगी, हालांकि ऐसे नियमों से परेशानी भी होगी, पर टीन एजर्स, स्वास्थ्य, सभ्यता और संस्कृति को बचाने के लिए कड़े नियम तो बनाने ही पड़ेंगे।