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मैं उसका अंश हूँ, बस यही पहचान है मेरी...

Sunday 6 November 2011

आदर्श नागरिकों के बगैर आदर्श राष्ट्र नहीं बन सकता

कुछ व्यक्तियों के मिलने से एक परिवार बनता है। परिवारों के मिलने से मोहल्ला, नगर या समाज का निर्माण होता है। इसी तरह कुछ गांवों को मिला कर एक विकास खंड का नाम दिया गया है। कुछ विकास क्षेत्रों को मिला कर एक तहसील और कई तहसीलों को मिला कर एक जनपद बनाया जाता है। उसके बाद कुछ जिलों के समूह को एक मंडल और कई मंडलों के बाद एक राज्य का नाम दिया जाता है। सभी राज्यों को मिला कर राष्ट्र का निर्माण हुआ है और सभी राष्ट्रों को जोड़ कर देखा जाये, तो एक दुनिया नजर आती है। परिवार से लेकर राष्ट्र तक, किसी का अपना कोई स्वरूप नहीं होता। अगर व्यक्ति हटा दिये जायें, तो सभी का अस्तित्व स्वत: ही समाप्त हो जायेगा, फिर भी आज कल यह बहुत सुनाई दे रहा है कि समाज का वातावरण दूषित हो गया है। लोकतंत्र के सभी अंग भ्रष्ट और लापरवाह हो गये हैं। देश की किसी को चिंता नहीं है। सब व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति में लगे हुए हैं। कर्तव्य पालन किसी की प्राथमिकता में नहीं है। इस तरह के अन्य तमाम दु:खद वाक्य किसी न किसी तिराहे, चौराहे पर, गांव की चौपालों पर, बस, ट्रेन की यात्रा के दौरान या किसी भी चर्चा के स्थान पर सुनने को आम तौर पर मिल ही जाते हैं। ऐसे दु:खद वाक्यों को सुनने के बाद यही सवाल उठता है कि समाज, विभाग, मंत्रालय, सरकार या देश का कोई अपना स्वरूप तो होता नहीं है और न ही कोई अपनी सोच होती है, तो फिर यह सब दूषित क्यूं नजर आ रहे हैं?
जवाब भी एक दम सीधा है कि इन सबका आधार व्यक्ति ही है और व्यक्ति भी किसी और देश के नहीं, बल्कि इसी देश के हैं, जो परिवार व समाज से लेकर सरकार के सभी अंगों में बैठे हैं। मतलब साफ है कि जब अधिकांश जगह एक ही जैसा दूषित वातावरण नजर आ रहा है या सरकार के अंगों में काम करने वाले अधिकांश जिम्मेदार भ्रष्ट या लापरवाह ही हैं, तो कहीं न कहीं व्यक्ति ही खराब है या व्यक्ति की सोच में ही बदलाव आया है! व्यक्ति की सोच में ही बदलाव आया है, तभी सब जगह दूषित वातावरण दिखाई दे रहा है, वरना किसी एक के करने से सब कुछ न सही होता है और न ही सब कुछ गलत हो सकता है।
सरकार या उसके अंगों को पारदर्शी, कर्तव्य परायण और पूर्ण रूप से ईमानदार बनाने की बात कही जा रही है। ऐसा होना ही चाहिए, पर सवाल यही है कि सरकार या उसके अंगों में कार्य करने वाले व्यक्ति इसी देश के हैं या इसी समाज से ही आते हैं। ऐसे में सरकार चलाने के लिए ईमानदार या कर्तव्य परायण व्यक्ति कहां से छांट कर लाये जायें या लाये जा सकते हैं क्या? इस प्रश्र का कोई उत्तर नहीं है, क्योंकि हम सब को ही सब कुछ करना है या संभालना है। व्यक्तियों की सोच में जो परिवर्तन हुआ है, उसी के घातक दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं, इसलिए सरकार और उसके अंगों में कार्य करने वाले लोगों में सेवा भाव जगाने के साथ सामाजिक समूह में रहने वालों की सोच को बदलने की भी आवश्यकता है, जो गुणवत्ता परक शिक्षा व अच्छे टीवी कार्यक्रमों द्वारा बदली जा सकती है, लेकिन इस ओर किसी का ध्यान ही नहीं है या कोई गंभीर ही नहीं है। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि किसी पेड़ की जड़ में कीड़े लगे हों, तो उसकी टहनियों पर कीटनाशकों का कितना भी छिडक़ाव कर लिया जाये, पर कोई लाभ नहीं होगा, वैसे ही व्यक्ति की सोच में सकारात्मक परिवर्तन आ गया, तो परिवार से लेकर पूरा राष्ट्र स्वत: ही बदला नजर आयेगा और बाकी कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।
परंपरा या संस्कृतियों से दूरी कही जाये या पाश्चात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव अथवा कुछ और। कुल मिला कर व्यक्ति की सोच ही घृणित हुई है, तभी व्यवस्थापिका और कार्यपालिका के साथ न्याय पालिका के भी दामन पर बड़े-बड़े दाग नजर आ रहे हैं। दाग स्वभाविक ही हैं, क्योंकि कार्यपालिका या व्यवस्थापिका की तरह ही न्याय पालिका में भी काम करने वाले व्यक्ति इसी समाज या इसी देश का हिस्सा हैं। समय के साथ मजबूत हुए मीडिया ने लोकतंत्र में चौथे स्तंभ का स्थान बना लिया है, पर मीडिया क्षेत्र भी दाग विहीन इसी लिए नहीं बचा है कि मीडिया में काम करने वाले भी इसी समाज का हिस्सा हैं, इसलिए सरकार को नैतिक शिक्षा के साथ टीवी कार्यक्रमों की ओर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए, क्योंकि उत्तम शिक्षा से बच्चों में आदर्श नागरिक का अंकुर पैदा किया जा सकता है और घर-परिवार में टीवी द्वारा वही वातावरण देकर उस अंकुर को वृक्ष बनाया जा सकता है, साथ ही सब कुछ करने का दायित्व सिर्फ सरकार का ही नहीं है, इसलिए अभिवावकों को भी अपने बच्चों में राष्ट्र पे्रम और कर्तव्य परायणता की भावना जागृत करनी होगी, वरना आने वाला समय और अधिक भयावह हो सकता है।