गुजरने वाला हर पल कुछ न कुछ यादें छोड़ कर ही जाता है, ऐसे में पूरे साल की यादों को शब्दों में समेट पाना संभव नहीं है, फिर भी वर्ष 2०11 की कई घटनायें ऐसी हैं, जो लंबे समय तक याद रहेंगी।
अतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर की तमाम खट्टी-मीठी यादें हैं, जिनमें यूरोप में आया मंदी का दौर हमेशा याद रखा जायेगा, क्योंकि मंदी का दुष्परिणाम विश्व को झेलना पड़ा है, इसी तरह आतंक का पर्याय बन चुके ओसामा बिन लादेन का अंत वर्ष 2०11 के खाते में दर्ज हो गया है। 42 सालों से निडरता के साथ राज करने वाले चर्चित तानाशाह कर्नल मुअम्मर गददाफी के राज और सांसों को विराम लग गया, वहीं मिश्र में होस्नी मुबारक और उनके शासन के विरुद्ध हुई क्रांति भी हमेशा याद रहेगी। जापान में आई सुनामी को भी भूल पाना आसान नहीं होगा। बात अगर मीडिया की करें तो ब्रिटेन के चर्चित अखबार न्यूज ऑफ द वल्र्ड को टेलीफोन हैकिंग के मामले में बंद करने की घटना भी दिमाग में चलती ही रहेगी, इसी तरह जूनियर असांजे द्वारा किये गये खुलासे भी हमेशा-हमेशा याद रहेंगे। अब बात हिंदुस्तान की ही करें तो वर्ष 2०11 घोटाला वर्ष के रूप में भी दर्ज किया जा सकता है, क्योंकि यूपीए सरकार घोटालों में उलझी रही है। आम आदमी पर इस साल महंगाई का कुछ अधिक ही असर दिखाई दिया, वहीं खुशी की बात यह है कि देश में पहली वार भ्रष्टाचार मुद्दा बन कर सामने खड़ा हो गया है। इस साल धार्मिक क्षेत्र में भी धूर्त धर्म गुरूओं के कई खुलासे हुए, जिससे धार्मिक आस्था को ठेस पहुंची, वहीं राजस्थान का नर्स भंवरी देवी प्रकरण भी न भूलने वाली घटनाओं में ही दर्ज हो गया है। अलगाववादियों द्वारा कश्मीर में अस्थिरता लाने के प्रयास भी दु:खद रहे। राजनीति के क्षेत्र में पश्चिम बंगाल में अदभुत घटना ही हुई, क्योंकि 34 साल पुरानी कम्यूनिस्ट सरकार का पतन हो गया। जाट आरक्षण के आंदोलनों के साथ भूमि अधिग्रहण को लेकर विभिन्न राज्यों में हुए आंदोलन याद ही रहेंगे, पर उत्तर प्रदेश के भटटा पारसौल में किसानों पर गोली चलाने की घटना हमेशा याद रहेगी, साथ ही उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार आदि को लेकर मंत्रियों को बर्खास्त करने का भी एक रिकार्ड बन गया है, जो वर्ष 2०11 के खाते में ही दर्ज हो गया है। ऐसी ही अन्य तमाम घटनायें हैं, जो किसी न किसी रूप में खुशी या गम देती रहेंगी, पर वर्ष 2०11 का 3० जून का दिन कभी न भूल पाने वाले दिनों में सबसे अलग शामिल हो गया है, क्योंकि 3० जून को सिक्का अधिनियम 19०6 की धारा 15 ए का प्रयोग करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने चार आने के सिक्के को बंद करने की घोषणा की थी। भारतीय रिजर्व बैंक की नजर में चवन्नी सिर्फ एक सिक्का हो सकती है, पर इस चवन्नी के साथ बचपन गुजारने वालों की भावनायें जुड़ी हैं। गोलक फोडऩे पर पांच और दस पैसे के सिक्कों के बीच खनखना कर गिरने वाली चवन्नी आंखों को अलग तरह की ही चमक प्रदान करती थी। बड़े या बुजुर्गों से चवन्नी पाकर बच्चे झूम उठते थे और उस चवन्नी पाने की खुशी में वह घंटों मस्त रहते थे। चवन्नी की आइसक्रीम खाकर जो खुशी मिलती थी, वह आज सौ रुपये वाली आइसक्रीम खाकर भी नहीं मिलती, इसलिए चवन्नी की जब-जब चर्चा होगी, तब-तब बचपन याद आयेगा, चवन्नी से जुड़ी तमाम घटनायें याद आयेंगी, पर वर्ष 2०11 उस प्यारी चवन्नी को काल बन कर ही आया और निगल गया। बचपन की खुशी का पर्यावाची बन चुकी वह चवन्नी अब कभी दिखाई नहीं देगी।
खैर, चवन्नी का सिक्का बंद होने का दु:ख कभी कम नहीं हो सकता, पर समय आगे बढऩे पर वर्ष 2०11 में ही 15 जुलाई के दिन सीना गर्व से चौड़ा भी हो गया, क्योंकि इस दिन रुपये को अपनी पहचान मिली थी। डी. उदय कुमार की डिजायन अब सभी को भा गयी है।
अतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर की तमाम खट्टी-मीठी यादें हैं, जिनमें यूरोप में आया मंदी का दौर हमेशा याद रखा जायेगा, क्योंकि मंदी का दुष्परिणाम विश्व को झेलना पड़ा है, इसी तरह आतंक का पर्याय बन चुके ओसामा बिन लादेन का अंत वर्ष 2०11 के खाते में दर्ज हो गया है। 42 सालों से निडरता के साथ राज करने वाले चर्चित तानाशाह कर्नल मुअम्मर गददाफी के राज और सांसों को विराम लग गया, वहीं मिश्र में होस्नी मुबारक और उनके शासन के विरुद्ध हुई क्रांति भी हमेशा याद रहेगी। जापान में आई सुनामी को भी भूल पाना आसान नहीं होगा। बात अगर मीडिया की करें तो ब्रिटेन के चर्चित अखबार न्यूज ऑफ द वल्र्ड को टेलीफोन हैकिंग के मामले में बंद करने की घटना भी दिमाग में चलती ही रहेगी, इसी तरह जूनियर असांजे द्वारा किये गये खुलासे भी हमेशा-हमेशा याद रहेंगे। अब बात हिंदुस्तान की ही करें तो वर्ष 2०11 घोटाला वर्ष के रूप में भी दर्ज किया जा सकता है, क्योंकि यूपीए सरकार घोटालों में उलझी रही है। आम आदमी पर इस साल महंगाई का कुछ अधिक ही असर दिखाई दिया, वहीं खुशी की बात यह है कि देश में पहली वार भ्रष्टाचार मुद्दा बन कर सामने खड़ा हो गया है। इस साल धार्मिक क्षेत्र में भी धूर्त धर्म गुरूओं के कई खुलासे हुए, जिससे धार्मिक आस्था को ठेस पहुंची, वहीं राजस्थान का नर्स भंवरी देवी प्रकरण भी न भूलने वाली घटनाओं में ही दर्ज हो गया है। अलगाववादियों द्वारा कश्मीर में अस्थिरता लाने के प्रयास भी दु:खद रहे। राजनीति के क्षेत्र में पश्चिम बंगाल में अदभुत घटना ही हुई, क्योंकि 34 साल पुरानी कम्यूनिस्ट सरकार का पतन हो गया। जाट आरक्षण के आंदोलनों के साथ भूमि अधिग्रहण को लेकर विभिन्न राज्यों में हुए आंदोलन याद ही रहेंगे, पर उत्तर प्रदेश के भटटा पारसौल में किसानों पर गोली चलाने की घटना हमेशा याद रहेगी, साथ ही उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार आदि को लेकर मंत्रियों को बर्खास्त करने का भी एक रिकार्ड बन गया है, जो वर्ष 2०11 के खाते में ही दर्ज हो गया है। ऐसी ही अन्य तमाम घटनायें हैं, जो किसी न किसी रूप में खुशी या गम देती रहेंगी, पर वर्ष 2०11 का 3० जून का दिन कभी न भूल पाने वाले दिनों में सबसे अलग शामिल हो गया है, क्योंकि 3० जून को सिक्का अधिनियम 19०6 की धारा 15 ए का प्रयोग करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने चार आने के सिक्के को बंद करने की घोषणा की थी। भारतीय रिजर्व बैंक की नजर में चवन्नी सिर्फ एक सिक्का हो सकती है, पर इस चवन्नी के साथ बचपन गुजारने वालों की भावनायें जुड़ी हैं। गोलक फोडऩे पर पांच और दस पैसे के सिक्कों के बीच खनखना कर गिरने वाली चवन्नी आंखों को अलग तरह की ही चमक प्रदान करती थी। बड़े या बुजुर्गों से चवन्नी पाकर बच्चे झूम उठते थे और उस चवन्नी पाने की खुशी में वह घंटों मस्त रहते थे। चवन्नी की आइसक्रीम खाकर जो खुशी मिलती थी, वह आज सौ रुपये वाली आइसक्रीम खाकर भी नहीं मिलती, इसलिए चवन्नी की जब-जब चर्चा होगी, तब-तब बचपन याद आयेगा, चवन्नी से जुड़ी तमाम घटनायें याद आयेंगी, पर वर्ष 2०11 उस प्यारी चवन्नी को काल बन कर ही आया और निगल गया। बचपन की खुशी का पर्यावाची बन चुकी वह चवन्नी अब कभी दिखाई नहीं देगी।
खैर, चवन्नी का सिक्का बंद होने का दु:ख कभी कम नहीं हो सकता, पर समय आगे बढऩे पर वर्ष 2०11 में ही 15 जुलाई के दिन सीना गर्व से चौड़ा भी हो गया, क्योंकि इस दिन रुपये को अपनी पहचान मिली थी। डी. उदय कुमार की डिजायन अब सभी को भा गयी है।