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Monday 26 December 2011

उत्तर प्रदेश में प्रतिष्ठा कलंकित करने का नया रिकार्ड बना

जनप्रतिनिधियों की प्रतिष्ठा का ग्राफ काफी पहले से ही नीचे आने का क्रम शुरू हो ही गया है, तभी लोग राजनीति को गंदे नाले की संज्ञा देने लगे हैं। देश के या अधिकांश राज्यों के कमोबेश एक जैसे ही हालात हैं और अधिकांश राज्यों में राजनेताओं को लेकर लोगों की लगभग एक जैसी ही राय बनती जा रही है। बात सिर्फ उत्तर प्रदेश की ही की जाये, तो बसपा सरकार के कार्यकाल में सत्ताधारी विधायकों व मंत्रियों के कारनामों ने लोकतंत्र को ही कलंकित कर दिया है। बसपा सरकार और उसकी मुखिया मायावती के अधिकांश निर्णय जनहितकारी होने की बजाये, तानाशाही पूर्ण ही रहे हैं। अधिकांश निर्णयों को लेकर वह शुरू से ही विवादों में रही हैं। पार्क या मूर्तियों पर अकूत धन बर्बाद करने की बात रही हो या किसानों के विरोध के बावजूद एक्सप्रेस-वे बनाने का मुद्दा हो। उन्होंने अधिकतर निर्णय जनता पर थोपे ही हैं, जिनका सीधा अर्थ यही निकलता दिखता है कि उद्योगपतियों, माफियाओं या ठेकेदारों को लाभ पहुंचा कर वह स्वयं भी किसी न किसी तरह लाभान्वित हो ही रही हैं, तभी वह किसी की बात सुनने तक को तैयार नहीं हैं। स्वार्थ सिद्ध करने के लिए वह किसानों पर लाठी-डंडों के साथ गोलियों तक की बौछार करा चुकी हैं, लेकिन विरोधी राजनीतिक दल भी गलत निर्णय को लेकर कुछ खास विरोध नहीं कर पाये हैं, जिसका दुष्परिणाम जनता को ही झेलना पड़ा है। विरोधी राजनीतिक दलों या उनके नेताओं की चुप्पी अथवा दबी जुबान से बोलने के पीछे यही कारण अहम है कि माफिया, ठेकेदार और उद्योगपति उनके भी चहेते रहे हैं और वह भी उनसे व्यक्तिगत लाभ सिद्ध करते रहे हैं, साथ ही भविष्य में भी करते रहेंगे।
मुख्यमंत्री मायावती के तमाम निर्णय ऐसे भी हैं, जिनका मतलब जनता से सीधा न होने के कारण चर्चा में नहीं आ सके हैं। ऐसा ही एक निर्णय नई शराब नीति बनाने का है, जिसके तहत उत्तर प्रदेश को दो हिस्सों में बांटा जा चुका है। मेरठ जोन बना कर अपने चहेतों को लाभ पहुंचाया जा रहा है, जबकि शराब नीति ऐसी बननी चाहिए थी, जिससे सरकार को राजस्व का और अधिक लाभ होता। ऐसे ही अनगिनत निर्णयों का सीधा आशय यही है कि मायावती और उनके मंत्री मंडल के सहयोगियों का एक मात्र उद्देश्य धन से व्यक्तिगत भंडार भरना ही रहा है। वरिष्ठ नेताओं की कारगुजारियों को देखते हुए ही बसपा के विधायक भी उसी रास्ते पर चल पड़े। उत्तर प्रदेश में ऐसा पहली बार हुआ कि विधायक खुलेआम और इतने बड़े पैमाने पर निधि का बंदरबांट करते देखे गये। निधि का आधे से अधिक धन विधायकों की जेब में ही गया है और एक हिस्सा ठेकेदार, अधिकारी-कर्मचारी मिल कर हजम कर गये हैं, तभी मौके पर धन का एक चौथाई हिस्सा भी सही से खर्च नहीं हुआ, जिसका दुष्परिणाम यह है कि विकास कार्य मौके की बजाये कागजों में ही दिखाई रहे हैं।
भ्रष्टाचार के साथ चारित्रिक पतन को लेकर बसपा के विधायकों और मंत्रियों ने एक नया रिकार्ड बनाया है। देश के किसी भी राज्य की और किसी भी दल की सरकार में इतने विधायकों और मंत्रियों के भ्रष्टाचार या चारित्रिक पतन के मामलों का खुलासा आज तक नहीं हुआ है। धन वसूली को लेकर धमकी देना, मारपीट करना, अपहरण करा लेना या हत्या तक कर देने के मामले प्रकाश में आ चुके हैं, लेकिन मुख्यमंत्री मायावती शुरू में सभी का साथ देती ही नजर आई हैं, पर आश्चर्य की बात यह है कि महिला मुख्यमंत्री होने के बाद भी विधायकों व मंत्रियों का सैक्स स्कैंडल में फंसना, लड़कियों को उठा लेना, बलात्कार करने जैसे अपराधों पर भी पर्दा डालने का प्रयास किया गया। हालांकि कई मामलों में फजीहत होने पर मुख्यमंत्री मायावती ने स्वयं ही कार्रवाही कराई है, जिससे अब तक वह विधायकों व मंत्रियों को बर्खास्त करने का रिकार्ड बन चुका है। उच्च शिक्षा मंत्री राकेश धर त्रिपाठी, कृषि शिक्षा मंत्री राजपाल त्यागी, पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री अवधेश वर्मा व होम गार्ड मंत्री हरिओम उपाध्याय को बर्खास्त कर फिर अपनी तेजतर्रार और पारदर्शी छवि का प्रमाण देने का प्रयास किया है, पर सवाल यह है कि अब तक वह चुप क्यूं थीं?, जबकि इन भ्रष्टाचारियों की कार्यप्रणाली व चरित्र के बारे में शुरू से ही जनता को स्पष्ट जानकारी थी। अगर वह शुरू में ही इन सब भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कार्रवाई कर देतीं, तो आज प्रदेश की जनता उनका और अधिक सम्मान कर रही होती, पर शुरू से ही नजर अंदाज करने के चलते प्रश्र चिन्ह उनकी कार्यप्रणाली पर भी लगाया जा रहा है, जिसे जनता कितना गलत या कितना सही मानती है, यह जानने का समय अब नजदीक आता ही जा रहा है और चुनाव परिणाम आने के बाद स्पष्ट हो ही जायेगा।