किसी भी तरह जीत का आंकड़ा पार करने की जंग बन कर रह गया है चुनाव। जंग कहना भी सही नहीं रहेगा, क्योंकि अधिकांश राजनेता मतदाताओं को भ्रमित करने का षड्यंत्र रचते दिख रहे हैं। तू-तू, मैं-मैं मतलब आरोप-प्रत्यारोप और विभिन्न तरह के हथकंडे। बस, चारों ओर यही सब सुनाई-दिखाई दे रहा है। आम आदमी से जुड़े मुद्दे चुनाव से पूरी तरह गायब हैं, इसलिए साफ तौर पर कहा जा सकता है कि सेहरा चाहे जिसके सिर पर बंधे, पर आम आदमी के हाथ इस बार भी कुछ नहीं लगने वाला।
आयोग की कड़ाई के चलते उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार शालीनता से ही हो रहा है, पर अंदर ही अंदर वह सब भी हो रहा है, जो पहले के चुनावों में होता रहा है। शराब, पैसा, दबंगई और तरह-तरह के वाद हावी नजर आ रहे हैं। परिवर्तन के नाम पर बहुत कुछ नहीं बदला है। हालांकि राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दलों के नेता घोषणा पत्र जारी करते दिख रहे हैं, पर उनकी चर्चा आम आदमी के बीच नहीं की जा रही है। प्रत्याशी प्रचार के दौरान अपने दलों के घोषणा पत्रों का जिक्र करते नहीं दिख रहे। अधिकांश प्रत्याशी जाति-धर्म के साथ तरह-तरह के हथकंडे अपना कर अपना खेल बनाने में ही व्यस्त दिखाई दे रहे हैं।
बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के आंदोलनों का असर उत्तर प्रदेश में भी ठीक-ठाक रहा था, इसलिए चुनाव से पहले लग रहा था कि जनता इस बार प्रत्याशियों से प्रचार के दौरान सवाल-जवाब करेगी, जिससे भ्रष्ट और लापरवाह जनता के सामने जा ही नहीं पायेंगे, पर चुनाव आते ही बाबा रामदेव या अन्ना हजारे का साथ देने वाली जनता भ्रष्टाचार, महंगाई और लापरवाही जैसे मुद्दे पूरी तरह भूल चुकी है। अधिकांश मतदाता जाति, क्षेत्र और धर्म के नाम पर ही बंटे दिख रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में प्रमुख समस्या भ्रष्टाचार ही कही जा सकती है। जनप्रतिनिधि ईमानदार होंगे, तो कई तरह की समस्याओं का समाधान स्वत: ही हो जायेगा। सर्वविदित है कि अधिकांश निवर्तमान जनप्रतिनिधियों ने चालीस प्रतिशत से अधिक विधायक निधि स्वयं ही हजम कर ली। अगर, यही धन ईमानदारी से खर्च किया गया होता, तो आज जमीन पर विकास कार्य दिखाई दे रहे होते, इसलिए ईमानदार जनप्रतिनिधि चुना जाना बेहद आवश्यक है। दूसरी बड़ी समस्या जातिवाद नजर आ रहा है। भ्रष्टाचार और लापरवाही के पीछे सबसे पहला कारण जातिवाद ही है, क्योंकि जाति के नाम पर चुने जाने वाले लोग जाति को ध्यान में रखते हुए ही कार्य करते हैं। शासन-सत्ता का दुरुपयोग कर अन्य जाति वालों का शोषण करते हैं, तभी विकास कराने या न कराने से उनकी छवि पर कोई अंतर नहीं पड़ता, इसलिए जाति या धर्म के नाम पर वोट मांगने वालों का खुलेआम विरोध होना चाहिए। उत्तर प्रदेश को बड़े पैमाने पर विकास की आवश्यकता है। अधिकांश राजनैतिक दल किसी प्रकार सत्ता पाना चाहते हैं और सत्ता मिलने के बाद स्वहित सिद्ध करते रहते हैं, तभी लंबा समय गुजरने के बाद भी उत्तर प्रदेश किसी भी मुद्दे पर संतृप्त नहीं हुआ है। प्रदेश के अधिकांश गांव बिजली, पानी, सडक़, शिक्षा, चिकित्सा और संचार जैसी प्राथमिक सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। बेरोजगारों की भीड़ बढ़ती जा रही है, फिर भी विकास के पक्षधर कुछ प्रतिशत लोग ही दिख रहे हैं। अंगुलियों पर गिनने लायक विकास के हितैषियों से जातिवादियों, धर्मवादियों, भ्रष्टाचारियों और लापरवाहों पर कोई फर्क नहीं पडऩे वाला, इसलिए विकास के प्रयास सामूहिक स्तर पर होने चाहिए। प्रयास करने का यही उत्तम समय है। स्वहित भूल कर हर आदमी को विकास की बात करनी चाहिए और जो विकास के पैमाने में खरा उतरता दिखाई दे, उसे ही समर्थन या वोट देना चाहिए।
प्रत्याशियों के गुण या दोष देखने का समय भी यही है, क्योंकि एक बार बटन दब गया, तो फिर हाथ में कुछ नहीं रहेगा। मतदाताओं को ध्यान देने की बात यह है कि चुनाव के कारण फिलहाल सभी विकास या जनहित की बात कर सकते हैं, ऐसे प्रत्याशियों से ही मतदाताओं को सतर्क रहना होगा। पुराने जनप्रतिनिधियों की कार्यप्रणाली के आधार पर ही उनकी बात का विश्वास करें, क्योंकि बार-बार ठगा जाना बुद्धिमत्ता नहीं कही जा सकती। बुद्धिजीवियों के साथ जनता बाद में पांच वर्ष तक कर्तव्यहीन जनप्रतिनिधियों और लापरवाह सरकार को कोसते रहते हैं, लेकिन चुनाव के समय मौन धारण कर जाते हैं। आपराधिक प्रवृति के प्रत्याशियों को नकारने का समय भी यही है, क्योंकि अपराधी राजनीति में कोढ़ की तरह हैं, इसलिए साफ छवि वालों को ही वोट दें, क्योंकि साफ छवि वाला व्यक्ति ही निर्लिप्त भाव से ईमानदारी और विकास की बात कर सकता है।
उत्तर प्रदेश की जनता को बटन दबाते समय यह अच्छी तरह ध्यान रखना होगा कि वह इस बार भी सही व्यक्ति को चुनने में चूक गये, तो परिवर्तन के इस दौर में उत्तर प्रदेश ही नहीं पिछड़ेगा, बल्कि उनकी आने वाली पीढिय़ा पिछड़ जायेंगी, जिसकी भरपाई आने वाले कई दशकों में भी नहीं हो पायेगी।
आयोग की कड़ाई के चलते उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार शालीनता से ही हो रहा है, पर अंदर ही अंदर वह सब भी हो रहा है, जो पहले के चुनावों में होता रहा है। शराब, पैसा, दबंगई और तरह-तरह के वाद हावी नजर आ रहे हैं। परिवर्तन के नाम पर बहुत कुछ नहीं बदला है। हालांकि राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दलों के नेता घोषणा पत्र जारी करते दिख रहे हैं, पर उनकी चर्चा आम आदमी के बीच नहीं की जा रही है। प्रत्याशी प्रचार के दौरान अपने दलों के घोषणा पत्रों का जिक्र करते नहीं दिख रहे। अधिकांश प्रत्याशी जाति-धर्म के साथ तरह-तरह के हथकंडे अपना कर अपना खेल बनाने में ही व्यस्त दिखाई दे रहे हैं।
बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के आंदोलनों का असर उत्तर प्रदेश में भी ठीक-ठाक रहा था, इसलिए चुनाव से पहले लग रहा था कि जनता इस बार प्रत्याशियों से प्रचार के दौरान सवाल-जवाब करेगी, जिससे भ्रष्ट और लापरवाह जनता के सामने जा ही नहीं पायेंगे, पर चुनाव आते ही बाबा रामदेव या अन्ना हजारे का साथ देने वाली जनता भ्रष्टाचार, महंगाई और लापरवाही जैसे मुद्दे पूरी तरह भूल चुकी है। अधिकांश मतदाता जाति, क्षेत्र और धर्म के नाम पर ही बंटे दिख रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में प्रमुख समस्या भ्रष्टाचार ही कही जा सकती है। जनप्रतिनिधि ईमानदार होंगे, तो कई तरह की समस्याओं का समाधान स्वत: ही हो जायेगा। सर्वविदित है कि अधिकांश निवर्तमान जनप्रतिनिधियों ने चालीस प्रतिशत से अधिक विधायक निधि स्वयं ही हजम कर ली। अगर, यही धन ईमानदारी से खर्च किया गया होता, तो आज जमीन पर विकास कार्य दिखाई दे रहे होते, इसलिए ईमानदार जनप्रतिनिधि चुना जाना बेहद आवश्यक है। दूसरी बड़ी समस्या जातिवाद नजर आ रहा है। भ्रष्टाचार और लापरवाही के पीछे सबसे पहला कारण जातिवाद ही है, क्योंकि जाति के नाम पर चुने जाने वाले लोग जाति को ध्यान में रखते हुए ही कार्य करते हैं। शासन-सत्ता का दुरुपयोग कर अन्य जाति वालों का शोषण करते हैं, तभी विकास कराने या न कराने से उनकी छवि पर कोई अंतर नहीं पड़ता, इसलिए जाति या धर्म के नाम पर वोट मांगने वालों का खुलेआम विरोध होना चाहिए। उत्तर प्रदेश को बड़े पैमाने पर विकास की आवश्यकता है। अधिकांश राजनैतिक दल किसी प्रकार सत्ता पाना चाहते हैं और सत्ता मिलने के बाद स्वहित सिद्ध करते रहते हैं, तभी लंबा समय गुजरने के बाद भी उत्तर प्रदेश किसी भी मुद्दे पर संतृप्त नहीं हुआ है। प्रदेश के अधिकांश गांव बिजली, पानी, सडक़, शिक्षा, चिकित्सा और संचार जैसी प्राथमिक सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। बेरोजगारों की भीड़ बढ़ती जा रही है, फिर भी विकास के पक्षधर कुछ प्रतिशत लोग ही दिख रहे हैं। अंगुलियों पर गिनने लायक विकास के हितैषियों से जातिवादियों, धर्मवादियों, भ्रष्टाचारियों और लापरवाहों पर कोई फर्क नहीं पडऩे वाला, इसलिए विकास के प्रयास सामूहिक स्तर पर होने चाहिए। प्रयास करने का यही उत्तम समय है। स्वहित भूल कर हर आदमी को विकास की बात करनी चाहिए और जो विकास के पैमाने में खरा उतरता दिखाई दे, उसे ही समर्थन या वोट देना चाहिए।
प्रत्याशियों के गुण या दोष देखने का समय भी यही है, क्योंकि एक बार बटन दब गया, तो फिर हाथ में कुछ नहीं रहेगा। मतदाताओं को ध्यान देने की बात यह है कि चुनाव के कारण फिलहाल सभी विकास या जनहित की बात कर सकते हैं, ऐसे प्रत्याशियों से ही मतदाताओं को सतर्क रहना होगा। पुराने जनप्रतिनिधियों की कार्यप्रणाली के आधार पर ही उनकी बात का विश्वास करें, क्योंकि बार-बार ठगा जाना बुद्धिमत्ता नहीं कही जा सकती। बुद्धिजीवियों के साथ जनता बाद में पांच वर्ष तक कर्तव्यहीन जनप्रतिनिधियों और लापरवाह सरकार को कोसते रहते हैं, लेकिन चुनाव के समय मौन धारण कर जाते हैं। आपराधिक प्रवृति के प्रत्याशियों को नकारने का समय भी यही है, क्योंकि अपराधी राजनीति में कोढ़ की तरह हैं, इसलिए साफ छवि वालों को ही वोट दें, क्योंकि साफ छवि वाला व्यक्ति ही निर्लिप्त भाव से ईमानदारी और विकास की बात कर सकता है।
उत्तर प्रदेश की जनता को बटन दबाते समय यह अच्छी तरह ध्यान रखना होगा कि वह इस बार भी सही व्यक्ति को चुनने में चूक गये, तो परिवर्तन के इस दौर में उत्तर प्रदेश ही नहीं पिछड़ेगा, बल्कि उनकी आने वाली पीढिय़ा पिछड़ जायेंगी, जिसकी भरपाई आने वाले कई दशकों में भी नहीं हो पायेगी।