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मैं उसका अंश हूँ, बस यही पहचान है मेरी...

Saturday, 4 February 2012

खेलों का शौकीन है आपका प्रत्याशी?

अपना खेल बनाने की स्वार्थी मानसिकता के चलते राजनेता वास्तविक खेलों को पूरी तरह भूलते जा रहे हैं। उपेक्षा के चलते खेलों के प्रति खिलाडिय़ों का रुझान लगातार कम होता जा रहा है, जिससे नई पीढ़ी पुराने खेलों का नाम तक भूलती जा रही है। हालांकि यहां-वहां स्टेडियम दिखाई देते हैं, पर संबंधित विभागों के अधिकारियों का ध्यान खेलों को बढ़ावा देने की दिशा में कम, बजट हजम करने पर अधिक रहता है, तभी उत्तर प्रदेश की अधिकांश प्रतिभायें आगे का रास्ता तय नहीं कर पा रही हैं।
भारतीय समाज में प्राचीन काल से खेलों का विशेष महत्व रहा है। गुरूकुल शिक्षा पद्धति के दौर से ही खेलों के प्रति विशेष रुझान रहता था और शिक्षा के साथ खेलों पर भी विशेष ध्यान दिया जाता था, इसी तरह गांव-गांव हर सुबह और हर शाम किसी न किसी खेल की प्रतियोगिता के आयोजन में ही गुजरती थी। कृषि कार्य के बीच ही गांव-गांव निरंतर अभ्यास चलता था और मेलों आदि में विशेष प्रतियोगिता आयोजित कर लोग मनोरंजन के साथ प्रतिभा को आगे बढऩे का भी अवसर प्रदान करते थे। कबड्डी, कुश्ती, वॉलीबॉल, लंबी-ऊंची कूद, गोला फेंक, चक्का फेंक, भाला फेंक, निशानेबाजी, घुड़ दौड़ आदि प्रमुख खेलों के लोग गुजरे दशक तक दीवाने दिखाई देते थे। लोकतंत्र की स्थापना के बाद विद्यालयों में भी ऐसे आयोजन होते रहते थे और बाद में सरकार खेलों को बढ़ावा देने के लिए बजट भी देने लगी, तो शुरूआत में निखार आया, लेकिन अब सोच पूरी तरह बदल गयी है। खेलों की जगह नजर धन की ओर चली गयी है, जिससे खिलाडिय़ों को प्रोत्साहित करने की बजाये बजट को हजम करने की दिशा में प्रयास अधिक होने लगे हैं, तभी खेल लुप्त होने के कगार पर पहुंच गये हैं।
जनप्रतिनिधि सक्रिय होते, तो खेल और खिलाडिय़ों की हालत दयनीय न होती। जनप्रतिनिधि सिर्फ अपना ही खेल बनाने के प्रयास में लगे रहते हैं। उन्हें ध्यान तक नहीं आता कि समाज के विकास में खेलों का भी योगदान हो सकता है। स्वयं गले तक भ्रष्टाचार में डूबे रहते हैं, इसलिए अधिकारियों से हिसाब मांग ही नहीं सकते। राजनेताओं की स्वार्थी मानसिकता के चलते ही प्रदेश से खेलों का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है। खेलों के विकास के लिए खेल प्रेमी जनप्रतिनिधि का होना बेहद आवश्यक है, इसलिए इस बार वोट देते समय इस मुद्दे पर भी विचार करना कि जिसे आप वोट देने की सोच रहे हैं, वह खेलों के प्रति गंभीर है या नहीं?
प्रत्याशियों से कहें कि वह समस्त विद्यालयों में खेलों से जुड़ा सामान उपलब्ध कराये। तहसील पर मिनी और मुख्यालय पर बड़े स्टेडियम बनबाये। खेल प्रतियोगिताओं में ग्लैमर के चलते क्रिकेट को ही वरीयता दी जाती है, इसलिए बाकी खेलों का भी समान रूप से आयोजन कराये। हालांकि प्रतिभा किसी के सम्मान की मोहताज नहीं होती, फिर भी खेल प्रतिभाओं को विशेष अवसरों पर सम्मानित कराने की दिशा में काम करे, ताकि अन्य युवाओं का खेलों के प्रति रुझान बढ़ सके। ऐसे सवाल कर अपने चहेते प्रत्याशी की मानसिकता परखें और लगे कि वह खेलों के प्रति गंभीर है, तो ही वोट दें।