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मैं उसका अंश हूँ, बस यही पहचान है मेरी...

Thursday 14 June 2012

जिंदगी से खिलवाड़

भोपाल गैस कांड के पीडि़तों के आंसू भले ही सूख गये हों, पर मृतकों के परिजन आज भी कराह रहे हैं, उनके दर्द से देश के अधिकांश नागरिक दु:खी है, बावजूद इसके सरकार या गेल गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं। समूचे उत्तर प्रदेश के हालात एक जैसे ही हैं। रुहेलखंड क्षेत्र की बात करें, तो गैस पाइप लाइन की देखभाल नियमित न होने के कारण लाखों लोगों का जीवन दांव पर लगा नजर आ रहा है। भोपाल का भयावह नजारा ध्यान आते ही लोगों की रूह कांप उठती है, इसीलिए गैस से संबंधित छोटी सी घटना होने पर भी लोगों की सांसें थम सी जाती हैं। जनपद शाहजहांपुर के थाना जैतीपुर क्षेत्र में गांव खड़सार के पास लगभग दो वर्ष पूर्व पाइप लाइन फटने के कारण हुए गैस रिसाव से ग्रामीणों में भगदड़ मच गयी थी। हालांकि किसी तरह की बड़ी घटना घटित नहीं हुई, फिर भी ग्रामीण काफी दिनों में सामान्य हो पाये। हादसा न होना भी एक संयोग ही कहा जायेगा, क्योंकि पाइप लाइन की देखभाल मानक के अनुरूप और नियमित नहीं की जा रही है। पाइप लाइन के सहारे बसे लाखों लोगों का आशंकित रहना स्वाभाविक ही है। गेल के अधिकारियों की उदासीनता के चलते ही पाइप लाइन के ऊपर और आसपास कई स्थानों पर मकान बन चुके हैं, ऐसे में गैस रिसाव होने पर भारी जनहानि होने की संभावना व्यक्त की ही जा सकती है। सब कुछ जानते हुए भी सरकार या गेल कुछ नहीं कर रहे हैं। बलरामपुर से आने वाली गैस पाइप लाइन शाहजहांपुर जनपद के पिपरौला में स्थित कृभको श्याम फर्टिलाइज़र को सप्लाई देती है, इसके बाद बरेली जिले के आंवला तहसील क्षेत्र में स्थित इफ्को को सप्लाई देते हुए जनपद बदायूं के बिसौली तहसील क्षेत्र में प्रवेश कर बिल्सी तहसील क्षेत्र में होते हुए नवसृजित जनपद भीमनगर के बबराला कस्बे के पास स्थित टाटा फर्टिलाइज़र को सप्लाई देती है। ढाई दशक पूर्व लाइन डालते समय गांवों को पूरी तरह बचाया गया था, साथ ही पाइप लाइन डालने के बाद बीस मीटर वृत्त में क्षेत्र को प्रतिबंधित घोषित कर दिया गया था। अब पाइप लाइन की नियमित देखभाल तक नहीं की जा रही है। वाल्व पैंतीस किमी की दूरी पर लगाये गये हैं, जो दुर्घटना रोक पाने में असफल ही साबित होंगे, इससे भी बड़े आश्चर्य की बात यह है कि गेल के जिम्मेदार अधिकारी यहां बैठते ही नहीं है। प्रमुख क्षेत्रीय कार्यालय आगरा या गाजियाबाद में बताया जा रहा है। सवाल उठता है कि लोग अगर समस्या बताना भी चाहें, तो वह किसे और कैसे बतायें? कृभको, इफको और टाटा से संबंधित अधिकारी पाइप लाइन के बारे में बात करने पर अनभिज्ञता जता देते हैं, क्योंकि गैस सप्लाई देने वाली कंपनी गेल का ही दायित्व पाइप लाइन की देखभाल करने का है, ऐसे में कोई हादसा होता भी है, तो कृभको, इफको और टाटा हाथ खड़े कर ही देंगे। इनकी जिम्मेदारी न होने के कारण ही यह सब निश्चिंत हैं और गेल का कोई कुछ कर नहीं पायेगा। गेल के अधिकारियों की लापरवाही के कारण ही पाइप लाइन के ऊपर बस्तियां बस चुकी हैं। जगह-जगह कोल्हू चल रहे हैं, जिनकी भट्टियां धधकती रहती हैं। दुर्भाग्य से कभी गैस रिसाव होने लगे, तो भारी जनहानि की प्रबल आशंका बनी हुई है। बम के ऊपर बसे गांवों को चाह कर भी नहीं बचाया जा सकेगा, क्योंकि गेल या संबंधित कंपनियों ने दूर ग्रामीण क्षेत्रों में बचाव के प्रभावी कदम आज तक नहीं उठाये हैं। लाखों लोगों के जीवन का सवाल है, इसलिए सरकार को समय रहते सक्रिय होना ही होगा, क्योंकि मौत के बाद इंसान लौट कर नहीं आते। उधर गैस पाइप लाइन के प्रतिबंधित क्षेत्र में निर्माण आदि होने पर गेल के अधिकारियों को स्थानीय प्रशासन को सूचना देनी होती है। गेल की सूचना पर स्थानीय प्रशासन कार्रवाई करता है। गेल का स्थानीय स्तर पर कोई अधिकारी ही नहीं है, तो तालमेल किसका और कैसे होगा? प्रशासन से जुड़े वरिष्ठ अफसरों तक को पाइप लाइन से संबंधित कोई जानकारी नहीं रहती है। स्थानीय प्रशासन पाइप लाइन का कभी निरीक्षण भी नहीं करता है और न ही बाकी कार्यों की तरह समीक्षा करता है। गेल और स्थानीय प्रशासन में तालमेल न होना भी एक बड़ी लापरवाही कही जा सकती है। इसके अलावा गैस पाइप लाइन के साथ बरती जा रही लापरवाही के चलते हादसे की संभावनायें बढ़ती ही जा रही हैं, साथ ही कृभको, इफको और टाटा फर्टिलाइज़र भी नियम के अनुसार आसपास ग्रामीण क्षेत्र में पर्यावरण और शुद्ध पेयजल की दिशा में काम करते नहीं दिख रहे हैं। वातावरण लगातार प्रदूषित हो रहा है, जिससे सांस व पानी के द्वारा आसपास के नागरिक धीमा जहर ही ले रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि लंबे समय बाद इस क्षेत्र में रोगियों की संख्या बढ़ती जायेगी। नियम और शर्तों के अनुसार संबंधित कंपनियों को निश्चित क्षेत्र में वृक्षारोपण कार्य और शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करते रहने चाहिए। रुहेलखंड क्षेत्र का यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि नागरिक अधिकारों की बात करने वाले लोगों का भी इस क्षेत्र में अभाव है, तभी गेल के साथ टाटा, इफको और कृभको मनमानी कर पा रहे हैं। जमीन अधिगृहण के समय किसानों को उचित मुआवजा भी नहीं दिया गया। कुछ भूमिहीन परिवारों को नौकरी देने का कंपनियों ने वादा किया था, जिसे आज तक पूरा नहीं किया गया है। उस समय आंदोलन करने वाले किसानों पर मुकदमे भी लगाये गये थे, जो न्यायालय में आज भी चल रहे हैं, लेकिन भूमिहीन हुए तमाम किसानों की सुध लेने वाला कोई दूर तक नजर नहीं आ रहा और रोटी की जंग में ही जीवन गुजार देने वाले गरीब किसान कंपनी प्रशासन से कैसे लड़ सकते हैं? (उक्त रिपोर्ट गौतम संदेश के 14 जून के अंक में प्रकाशित हो चुकी है।)