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मैं उसका अंश हूँ, बस यही पहचान है मेरी...

Saturday 1 September 2012

कब तक साथ देगा लाडो का नसीब

रुई जैसी मुलायम छोटी सी लाडो को जो देखता, वो देखता ही रह जाता, सर्वांगीण सुन्दर लाडो को चूमे, छूए बिना कोई रह ही नहीं पाता, वो सब की प्यारी बच्ची थी, लाडो के पापा लाडो को बचपन में ही छोड़ कर भगवान् के पास चले गये, माँ घर-परिवार को संवारने में ही जुटी रहती, लाडो के दुर्भाग्य ने पिता छीन लिए, लेकिन सौभाग्य ने लाडो को देवता जैसा बड़ा भाई भी दिया था, जो पिता जैसी देखभाल करता था, भाई जैसी सुरक्षा देता था, दोस्त जैसी मस्ती कराता था और सेंटा क्लोज की तरह मुंह से निकलते ही लाडो की हर जरुरत पूरी करता, रात-दिन हर क्षण दोनों साथ ही रहते, लाडो के भाई को कोई कुछ कह देता, तो लाडो उसकी सबसे बड़ी दुश्मन हो जाती, माँ भी भाई को कभी डांटती तो माँ से भी रूठ जाती, भाई ही लाडो की जिन्दगी था और भाई ही संसार, लाडो का दिन भाई से ही शुरू होता और भाई पर ही ख़त्म हो जाता, दुःख और परेशानी के नाम का लाडो के जीवन में एक अंश भी नहीं था, लाडो की जरूरतों को पूरा करने के लिए भाई कुछ भी करता, पर लाडो को मायूस नहीं होने देता, अपने जेब खर्च काट कर लाडो को चोकलेट, फ्रोक दिलाता, लाडो थोड़ी बड़ी हुई, तो भाई ने एक-एक रुपया जोड़ कर लाडो को साईकिल दिला दी, अब पूरे दिन भाई लाडो को साईकिल सिखाता, गिर जाती तो पुचकारता, रूठ जाती तो मनाता और थोड़ी दूर चला ले जाती तो ताली बजा कर हौसला बढाता, भाई कालेज जाने लगा, पढ़ाई का खर्च बड़ा तो भाई साथ में ट्यूशन भी पढ़ाने लगा, इस बीच लाडो अकेली रह जाती तो पढ़ाई में खुद को बहलाने का प्रयास करती और घड़ी की सुइयों के साथ दरवाजे की ओर ही निहारती रहती, दूर से उसे भाई के आने का अहसास हो जाता, तो चहकती हुई जाकर लिपट जाती, भाई भी उसे दुलार करते हुए हाथ में चाकलेट थमा देता, घर आकर लाडो की भाई के साथ फिर मस्ती शुरू हो जाती, खेल-खेल में पढ़ाई, खेल-खेल में खाना, सब खेल में ही होता, जिससे उम्र तो बढ गई, पर लाडो मन से बड़ी नहीं हुई, माँ कह देती की भाई उनका बेटा है, इसी बात पर वह पूरे घर को ही अस्तबल बना देती, क्योंकि भाई सिर्फ उसका है, माँ हँसी में ही कह देती की मैं तो भाई को ही प्यार करती हूँ, तो भी आसमान सर उठा लेती, क्योंकि उससे अधिक भाई को प्यार क्यूं करती हो? माँ और भाई लाडो को बच्ची ही समझते रहे, पर लाडो को यह बीमारी हो गई, भाई के साथ लाडो एक दम खुश थी, अचानक भाई के रिश्ते वाले आ गये, माँ ने भाई का रिश्ता पक्का कर दिया, लाडो ने खुशी में सारा जहां सिर पर उठा लिया, विवाह से संबंधित एक-एक चीज लाडो ने ही खरीदी, भाई ने भी जुराब से लेकर टाई तक सब लाडो की पसंद का ही पहना, घर से लेकर भाई की ससुराल तक सब लाडो के अनुसार ही हुआ, शादी का दिन आ गया, उस दिन भाई से अधिक लाडो खुश थी, लाडो ने जम कर मस्ती की, वो दिन लाडो की मस्ती का आखिरी दिन था, पत्नी के आते ही भाई की कंपनी पत्नी हो गई, लाडो अकेली हो गई, उसे हर क्षण भाई की याद आती, पर संकोच में वह चुप रह जाती, लाडो अन्दर ही घुटती रही, वह घुटन में कठोर होती जा रही थी, उसके मन में हर समय रहता की भाई उसे ऐसे कैसे छोड़ सकता है, उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आते, सोचती की भाई इतने सालों से उसे मूर्ख बना रहा था और अगर वाकई प्रेम करता था तो ऐसे अचानक कैसे छोड़ सकता है, खुद ही जवाब खोज लेती की भाई उससे प्रेम करता ही नहीं है, इसी अकेलेपन के आक्रोश में एक दिन लाडो जंगल की ओर भाग गई, पहली वार घर से निकली थी, सो उसे पता ही नहीं था की कौन सा जानवर मांसाहारी होता है और कौन सा शाकाहारी, शेर, चीते, भेड़िये, सियार, लोमड़ी सब मिले, किसी ने झपट्टा मारा, तो किसी ने निगलने का ही प्रयास किया, लेकिन लाडो किसी तरह सब से बचती हुई, एक ऊंचे पहाड़ की चोटी पर जाकर बैठ गई और फफक-फफक कर रोने लगी, पीछे-पीछे खोजता हुआ भाई बुलाने आया तो लाडो ने यह कह लौटा दिया मुझे अब तुम्हारे साथ नहीं रहना, तुम धोखेबाज हो, लाडो की जिद के सामने भाई की एक न चली और लौट गया, वह बहन के गम में डूब गया, पूरी तरह बदल गया, कुछ ही महीना बाद लोगों ने उसे टोकना शुरू कर दिया तो वह घर के अन्दर ही कैद हो गया, उधर पांच साल बाद लाडो की एक चिंपैजी से दोस्ती हो गई, दोनों फिर मस्ती से रहने लगे, लाडो चिंपैजी के सानिध्य में भाई को भूल गई, चिंपैजी का एक दिन मन ठीक नहीं था, लाडो खेलने की जिद करने लगी, चिंपैजी ने कहा थोड़ी देर बाद खेलेंगे, इसी बात पर बच्ची जैसी अक्ल वाली लाडो भड़क गई और अपनी गुडिया उठा कर भाग गई, जाते हुए चिंपैजी से कह गई की मैं ही मूर्ख थी, जो इतने दिनों से जानवर के साथ थी, इतने पर भी चिंपैजी ने मनाने की कोशिश की, लेकिन लोमड़ी और सियार आदि ने मिल कर लाडो से कह दिया की चिंपैजी तो भेड़िये से भी खतरनाक होता है, तुम रोज सोती थीं, तो हम आकर तुम्हारी रखवाली करते थे, वरना अब तक तो खा गया होता, लाडो की समझ में लोमड़ी और सियार की बात आ गई, वो चिंपैजी से खुट्टा कर चली गई, लोमड़ी और सियार ने खाने का मन तो बनाया, पर तेजी से दौडती लाडो को वह पकड़ नहीं पाए, लाडो जंगल से बाहर निकल कर इंसानों की बस्ती में आ गई, वो इंसानों के बारे में कुछ नहीं जानती है, क्योंकि इंसानों में रही ही नहीं है, अब हर इंसान उसे खाने की जुगत में है, जानवरों से बच कर सुरक्षित लौट आई लाडो का नसीब देखते हैं कब तक साथ देता है .........