हिन्दुस्तान आज़ाद होने के बाद से ही काँग्रेस की आलोचना करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है, इसके बावजूद आश्चर्य की बात यह है काँग्रेस को नज़रंदाज़ कर पाना किसी के लिए भी नामुमकिन ही है। आज भी कोई राजनैतिक दल काँग्रेस को एकतरफा धराशाई करने की स्थिति में नहीं है। यह हाल तब है, जब आदर्श के पैमाने से काँग्रेस पूरी तरह बाहर हो गई है। माना काँग्रेस के पास बहुमत नहीं है, फिर भी पिछले आठ वर्षों से तमाम दलों को साथ लेकर दुनिया के सब से बड़े लोकतंत्र पर शासन कर रही है और आने वाले चुनाव से भी बाहर नहीं है, जबकि हर दिन घोटाले के किसी न किसी आरोप से घिर जाती है। मीडिया, बुद्धिजीवी, समाजसेवी और विरोधी राजनैतिक दल काँग्रेस को लगातार कठघरे में खड़ा किये हुए हैं, पर एक भी कांग्रेसी विचलित नहीं है। यही कांग्रेसियों की मूल शक्ति है, जो तमाम कमियों के बावजूद उन्हें पार लगा देती है। गैर कांग्रेसियों को, खास कर भाजपाइयों को इस बिंदु पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
आगे बढ़ना इंसान का मूल स्वभाव है। हर कोई सत्ता, पद,
प्रतिष्ठा और धन चाहता है, लेकिन इस सब के लिए व्यक्ति क्या कर सकता है, यह सवाल
चाहने से बड़ा है, क्योंकि अच्छे-बुरे की पहचान का माध्यम इच्छा नहीं, बल्कि कर्म
है, इस दृष्टि से देखा जाए, तो कांग्रेसियों के बीच भी प्रतिस्पर्धा रहती है, पर
कांग्रेसी यह सब इंसानी स्वभाव के दायरे में करते हैं। भाजपाइयों की बात की जाये,
तो प्रतिस्पर्धा के स्थान पर केकड़ा नीति ही अधिक दिखाई देती है। बाल्टी में भरे केकड़ों को देखना। एक-एक कर चढ़ने की बजाए, एक-दूसरे की टांग खींचते रहते हैं और एक भी नहीं चढ़ पाता।
इसी तरह भाजपाई सत्ता मिलने की कल्पना में प्रधानमंत्री पद को लेकर भिड़ जाते
हैं और सत्ता के करीब तक भी नहीं पहुँच पाते, इसी तरह गैर कांग्रेसी और गैर
भाजपाइयों की बात करें, तो अधिकाँश छोटे दलों का उदय सत्ता पाने की जल्दबाजी में
ही हुआ है, सभी के अपने सपने हैं और सभी को सपने पूरा करने की शीघ्रता भी है,
इसलिए छोटे दलों का कोई नेता किसी भी स्थिति में त्याग करने की सोच भी नहीं सकता, तभी छोटे दलों के नेताओं के पास कांग्रेस या भाजपा की गोद में बैठने के अलावा
कोई और विकल्प नहीं बचता। छोटे दलों के
अधिकांश नेता पूर्व में काँग्रेस या भाजपा में ही
रहे हैं, इसलिए मन से काँग्रेस और भाजपा को बड़ा
दल मानते हैं, जबकि समकक्ष नेताओं को समर्थन देने में हीनता और अहंकार का भाव आड़े आ जाता
है। छोटे दलों के नेताओं की समझ में यह बात नहीं आती कि वह काँग्रेस या भाजपा की
मदद से कभी आगे नहीं बढ़ सकते। वर्तमान राजनैतिक वातावरण के अनुसार छोटे दलों के
नेताओं के पास काँग्रेस और भाजपा को मात देने का शुभ अवसर हैं। सयुंक्त मोर्चा की
बात चलती है, पर छोटे दलों के नेताओं की महत्वाकाक्षायें
और अहंकार हमेशा आड़े आ जाता है, जबकि काँग्रेस और भाजपा
की गुलामी से देश के लोगों को निकालने के लिए फिलहाल संयुक्त मोर्चा बनना आवश्यक
भी है। आज सयुंक्त मोर्चा बन
जाए, तो बहुमत आसानी से मिलने के आसार हैं, क्योंकि भ्रष्टाचार के कठघरे में
काँग्रेस की बगल में ही भाजपा सीना ताने खड़ी है। हिन्दुस्तान की आम जनता इन दोनों बड़े दलों को सबक सिखाने को
आतुर है, पर यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि देश की जनता को यह अवसर नहीं मिल सकता,
क्योंकि प्रधानमंत्री बनने का उतावलापन भाजपाइयों से अधिक संयुक्त मोर्चा में शामिल
होने वाले दलों के नेताओं में है, जिसका कोई उपचार नहीं है।
सोनिया गांधी को हिटलर घोषित करते हुए भाजपा नेता चटखारे
भरे भाषण देते देखे जा सकते हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम बदल कर मौनमौन
सिंह रख दिया है, लेकिन सोचने की बात यह है कि देश के प्रधानमंत्री जैसे पद पर
आसीन व्यक्ति छोटा सा छोटा निर्णय भी अपनी पार्टी अध्यक्ष के इशारे पर ही लेता है।
कुछ भी हो जाये, पर एक भी काँग्रेसी पार्टी अध्यक्ष के ऊपर की गई टिप्पणी बर्दाश्त
नहीं करता। केन्द्रीय मंत्री अपनी पार्टी अध्यक्ष के लिए जान देने की बात करता है,
यही अनुशासन और पार्टी अध्यक्ष के प्रति समर्पण काँग्रेस की सब से बड़ी शक्ति है
और गैर काँग्रेसियों के पतन का प्रमुख कारण है केकड़ा नीति। गैर काँग्रेसियों में
न समर्पण भाव है और न अनुशासन, इसलिए खुद की शर्मिंदगी छुपाने के लिए सोनिया गाँधी
को हिटलर और मनमोहन सिंह को मौनमौन सिंह कहते हैं। गैर काँग्रेसियों के पास काँग्रेस
की आलोचना करने के अलावा खुद की एक भी खासियत नहीं है। भ्रष्टाचार के कठघरे से बाहर कोई नहीं है, पर गैर काँग्रेसी भ्रष्ट होने के साथ लापरवाह भी हैं, इसलिए काँग्रेस को आने वाले चुनाव में मात दे पाना आसान नहीं है।